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गौ सेवा: हमारा परम धर्म

देवेश चतुवेर्दी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गौ को साक्षात विष्णु का रूप, भगवान भोलेनाथ का वाहन नन्दी माना गया है। भगवान श्री कृष्ण को सारा ज्ञान कोष गोचरण से ही प्राप्त हुआ था। ॠग्वेद ने गाय को उघन्या कहा है, यजुर्वेद कहता है कि गो अनुपमेय है और अर्थवेद में गाय को संपत्तियों का घर कहा गया है। हिन्दू धर्म के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवी झ्र देवताओं का निवास है। भगवान कृष्ण ने श्रीमद्र भगवतगीता में कहा है – धतेनामस्मि कामधेनु, अर्थात में गायों में कामधेनु हूँ। भारत में सबसे बड़ा धन गोधन को और सर्वश्रेष्ठ लोक को गोलोक या वैकुण्ठ कहा जाता है। गो सेवा और गोरक्षा के बिना विश्व का कल्याण संभव नहीं है, मनुष्य जाति का जीवन गौ माता का कर्जदार है क्योंकि जन्म देने वाली माँ के पश्चात गौ माता का दुध ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसलिए हिन्दू धर्म में गाय को माता के रूप माना जाता है, और भोजन पकाते समय पहली रोटी गौ माता की ही होती है। शास्त्रों और विद्वानों के अनुसार कुछ पशु पक्षी ऐसे होते हैं उसमें से गाय भी एक है, माना जाता है उनका अगला जन्म मनुष्य योनि में होता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय एक ऐसा प्राणी है जो आंक्सीजन ग्रहण करता है और आंक्सीजन ही छोड़ता है जब की मनुष्य एवं अन्य प्राणी आंक्सीजन लेते है और कार्बन डाई आॅक्साइड छोड़ते हैं। हिन्दू धर्म में गाय के महत्व के आध्यात्मिक, धार्मिक और चिकित्सीय कारण भी रहे हैं। गाय एक मात्र ऐसा पशु है जिसका सब कुछ मनुष्य के किसी न किसी प्रकार से काम में आता है । गाय का दूध, गोमुत्र, गोबर के अलावा दूध से निकला मक्खन, घी, दही, छाछ आदि सभी बहुत ही उपयोगी और गुणवक्तासे परिपूर्ण है। गाय का दूध पीने से शक्ति का संचार होता है और हमारे रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है। गाय के दुध से रेडियो एक्टिव विकिरणों से भी बचा जा सकता है। गाय के घी से हवन करने पर लगभग एक टन आंक्सीजन का उत्पादन होता है और तीस मीटर तक 96% कीटाणु आदि नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि मंदिरों में एवं घर की पूजा में घी का दीपक जलाने तथा धार्मिक समारोहों में हवन करने की प्रथा का प्रचलन है। घी का सेवन करने से पूरा शरीर पुष्ट बनता है साथ – साथ प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है। गाय के घी की दो तीन बूंदे नाक में डालने से माइग्रेन का दर्द कम हो जाता है। सभी के लिए घी का सेवन स्वस्थ्य के लिए बहुत ही उपयोगी है। आयुर्वेद में घी को औषधि का महत्व दिया गया है। गाय के दूध का दही हमारे पाचन तंत्र को सेहतमंद बनाए रखने में बहुत ही कारगर सिध्द होता है। दही में सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु होते हैं । छाछ पीने से पाचन तंत्र मजबूत बनता है और पेट की गर्मी शांत होती है दही को पेट से जुड़े विभिन्न प्रकार के रोग में उपयोगी पाया गया है। गौमूत्र का उपयोग औषधि के रूप में भी बहुत उपयोगी है । गौमूत्र को कई प्रकार की दवाइयाँ बनाने में प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसमें रोगाणुओं को मारने की क्षमता होती है। वर्तमान में मानव जीवन कृषि में रासायनिक कीटनाशकों से होने वाले दुष्परिणामों को झेल रहा है ऐसे में गौ मूत्र का उपयोग कीटनाशक दवाऐ बनाने में उपयोग हो रहा है। भारत में गाय के गोबर को भी बेहद उपयोगी माना जाता है। गोबर गैस प्लांट द्वारा गैस ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है । पेट्रोल, डीजल, कोयला प्राकृतिक सीमित मात्रा में हैं पर गोबर से हमें यह ऊर्जा सदेव मिलती रहेगी। गाय के गोबर से बनी खाद कृषि के लिए बहुत ही उपयुक्त है परन्तु अब रासायनिक खादों का उपयोग कृषि में होने से कैंसर जैसी विभिन्न बीमारियां बढ़ रही हैं। गाय का गोबर कच्चे घरों को लीपने के लिए प्रयोग किया जाता रहा है वहीं गाय के गोबर से बने कंडे गाँव में चूल्हा में जलाने एवं हवन जैसे पवित्र कार्यों मे उपयोग किए जाते हैं इससे वातावरण शुद्ध हो जाता है और घर के आसपास मौजूद कीटाणु एवं विषाणु समाप्त हो जाते हैं। अगर कोई मानसिक रूप से ग्रसित है या बहुत ज्यादा तनाव में है तो एक बार बस गौशाला में जाकर गाय का चेहरा देखे उनकी आखों में देखे या उसके बछड़े को देखे तो उस मनुष्य का तनाव पल भर में दूर हो जायेगा क्योंकि गाय में वात्सल्य और ममत्व है। गौ माता जहाँ पर बैठती है वहाँ के वातावरण को शुद्ध करके सकारात्मकता ऊर्जा से भर देती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी गौ माता को राष्ट्रीय पशु घोषित किये जाने का सुझाव दिया है जो बहुत ही स्वागत योग्य है। अब उत्तर प्रदेश में भी लगातार गौवंश के संरक्षण और संबर्धन को लेकर काफी काम किया जा रहा है। जर्मनी की लगभग 61 वर्षीय फ्रेड़रिक इरिना ब्रइनिगं मथुरा के गोवर्धन में रहती हैं जिन्हें लोग प्यार से अंग्रेजी दीदी या सुदेवी माताजी के नाम से भी जानते हैं । वह पहले जर्मनी से उत्तर प्रदेश में मथुरा भ्रमण के लिए आई और यहाँ गोशाला में गो सेवा करके उन्हें एक अलग ही आनन्द की अनुभूति हुई और फिर उन्होंने मथुरा में गो सेवा करने का मन बना लिया। उन्हें गो सेवा के लिए हाल ही में 70 वें गणतंत्र दिवस के पर्व पर पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। श्री राजेन्द्र कुमार अग्रवाल निवासी बीकानेर राजस्थान / प्रवासी कोलकाता अपने व्यवसाय के साथ-साथ व्रिन्दावन,उत्तर प्रदेश और बीकानेर, राजस्थान में स्थित कुछ गौशलाओं को आर्थिक अनुदान दे कर अपनी सेवा प्रदान कर रहे हैं। वह बताते हैं कि बीकानेर, राजस्थान की नंदनवन गौशाला सेवा समिति की खास बात है कि यहाँ विकलांग, अन्धी दुर्घटनाग्रस्त व बीमार गायों की देखभाल की जाती है। राजेन्द्र जी को गो सेवा से सुख और शांति की अनुभूति होती है। वह अपने समय और सामर्थ्य के अनुसार पिछले 6 साल से गो सेवा से जुड़े हुए हैं और वर्तमान में युवाओं के बढ़ रहे रूझान को देख कर काफी खुश हैं। आज हमारे देश में गाय की जो उपेक्षा एवं दुर्दशा हो रही है उसे देखते हुए गोधन के रक्षण और संबर्धन के लिए समाजिक चेतना की आवश्यकता है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को गो सेवा में रूचि लेनी चाहिए। गो सेवा करने वाला व्यक्ति पुण्य अर्जन के साथ ही मानसिक शांति भी प्राप्त करता है। गौ संबर्धन से देश वा समाज स्वस्थ्य एवं सम्पन्न बनेगा। सुदेवी माताजी, राजेन्द्र जी जैसे लोग यहाँ तक की श्री कृष्ण भगवान जब गो सेवा कर सकते हैं तो आप क्यों नहीं? ?