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माघ/मौनी अमावस्या – नई शुरुआत के लिए अमावस्या

आज 09 फरवरी, 2024 मौनी अमावस्या है।माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है।इस दिन भुवन भास्कर सूर्य और चन्द्रमा एक साथ मकर राशि में रहते हैं। वैसे तो प्रत्येक अमावस्या का पूजा पाठ,व्रत,जप, दान और साधना की दृष्टि से महत्त्व होता है, परन्तु मौनी अमावस्या का साधना और मन की शुद्धि हेतु अतिशय महत्त्व शास्त्रों में वर्णित है।मौन रहना एक तप है , एक साधना है ।मुनेर्भावो मौनम् अर्थात् मुनि का भाव ही मौन है।इस प्रकार मौन रहने  से मुनि सम्बन्धी  अनेक गुण मनुष्य में स्वतः आ जाते हैं । वाणी -विषयक मन के संयम का नाम मौन है ।मौन व्रत व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है ।मौन स्वयं से संवाद का साधन है । यह हमें आत्मावलोकन और आत्मविश्लेषण का अवसर प्रदान करता है ।यह आन्तरिक शक्तियों का संरक्षण , मन का निग्रह और दुर्वृत्तियों का शमन करता है । मन को शुद्ध करने के लिए मानसिक तप आवश्यक होता है और मानसिक तप का प्रधान अंग मौन व्रत है ।मौन के अप्रतिम महत्त्व को देखते हुए हमारे शास्त्रों में छःकार्यों के समय मौन का विधान किया गया है – 

उच्चारे मैथुने चैव प्रस्रावे दन्तधावने ।

स्नाने भोजनकाले च षट्सु मौनं समाचरेत् ॥

अर्थात् जप , मैथुन , मल -मूत्र -विसर्जन के समय,  दन्तधावन के समय, स्नान के समय और भोजन के समय मौन रहना चाहिए । इन अवसरों पर मौन का वैज्ञानिक महत्त्व भी सिद्ध है।शास्त्र कहते हैं कि यदि मौनी अमावस्या के दिन सोमवार हो और उस दिन व्यक्ति मौन रहकर हरि -चिन्तन करे तो उसे एक सहस्र अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है । इसमें अर्थवाद भले हो किन्तु यह मौन के अतिशय महत्त्व और उस पर बल देना प्रदर्शित करता है ।मौन से व्यक्ति का चित्त एकाग्र होता है । एकाग्र  मन से  ही धर्म का धारण और ध्यान किया जाता है –

धारणान्मनसा ध्यानाद् यं धर्मकवयो विदुः। महाभारत ।

महाभारत उद्योगपर्व में सनत्सुजात युधिष्ठिर से कहते हैं कि जहां मन के सहित वाणी रूप वेद नहीं पहुचते उस परमात्मा का नाम ही मौन है ।यहाँ परमात्मा को मौनस्वरूप बताया गया है ।मौन दो प्रकार का होता है- वाणी से और मन से । कम बोलना और सत्य बोलना यह भी मौन का एक प्रकार है । दूसरा  मन से मौन रहकर । मौन के समय मन में सद् और शुभ चिन्तन ही करना चाहिए । अशुभ और दुष्ट चिन्तन से मौन का उद्देश्य नष्ट हो जाता है । कभी -कभी वाणी और विचारों दोनों से व्यक्ति को मौन धारण करना चाहिए । यह ध्यान से सम्भव होता है ।

सांसारिक जीवन में भी मौन के अनेक लाभ हैं । मौनेन कलहो नास्ति अर्थात् मौन से कलह नहीं होता । मौन से आपके ऊर्जा का सरंक्षण होता है । मौन से आप अनावश्यक विवाद में नहीं पड़ते  हैं ।  हमारे ग्रन्थों में मौन के अनेक गुण बताए गए हैं -जैसे पर -निन्दा से बचे रहेंगे, असत्य भाषण से बचेगे, अन्तः करण की शान्ति भंग नहीं होगी,किसी से क्षमा नहीं मागनी नहीं पड़ेगी, आदि आदि । रघुवंश महाकाव्य में कविकुल गुरु कालिदास राजा दिलीप के अनेक सद्गुणों का वर्णन करते हुए सर्वप्रथम उनके मौन गुण का उल्लेख करते हैं –

ज्ञाने मौनं क्षमा शक्तौ त्यागे श्लाघाविपर्यय:।                           

अर्थात् दूसरे की बात जानकर भी( दूसरे के गुप्त रहस्यों को जानकर भी)मौन रहना ,यह राजा दिलीप का प्रथम गुण था। इससे व्यक्ति के धैर्य और गाम्भीर्य का पता लगता है। मौन में अपरिमित शक्ति होती है मौन से व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य उत्तम रहता है । व्यक्ति में रचनात्मकता और सकारात्मकता बढ़ती है ।आधुनिक कवि भी मौन के महिमा प्रख्यापन में सदैव मुखर रहे हैं। मौन को सर्वार्थ साधक बताते हुए लिखा है

आत्मन: गुण दोषेण बंध्यते शुक सारिका।

बका: तत्र न बध्यते मौनं सर्वार्थसाधनम्।।

अर्थात् वाचाल होने के अपने गुण दोष के कारण तोता मैना पिंजरे में कैद हो जाते हैं किन्तु बगुला मौन रहने के कारण स्वच्छन्द रहता है। मौन रहने से सब कुछ साधा जा सकता है।विद्वानों की सभा में मूर्खों के लिए मौन किसी आभूषण से कम नहीं होता।

विशेषतः सर्वविदां समाजे

विभूषणं मौनमपण्डितानाम्।।

जब आप मौन रहने है तब आपको अपनी कमियों के विश्लेषण का अवसर मिलता है, परमात्मा के चिन्तन मनन का अवसर मिलता है।अन्त में श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान्  श्री कृष्ण के मौन के  महत्त्व के सम्बन्ध में अधोलिखित वचन से अपनी बात समाप्त करते हैं –

मनः प्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।

भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते । 17/6

यहाँ मन की प्रसन्नता, सौम्य भाव. मौन ( मननशीलता) मन का निग्रह और भावों की शुद्धि को  मानसिक तप कहा गया है ।  मानसिक तप के  विना मनुष्य इहलोक और परलोक दोनों में अभीष्ट नहीं प्राप्त कर सकता।मौनव्रत का अभ्यास शनैःशनैः करना चाहिए । पहले कुछ घण्टे फिर एक दिन , दो दिन, तीन दिन ।मौनी अमावस्या के दिन यदि कोई दिन भर मौन न रह सके तो कम से कम स्नान के समय तक मौन रहने का प्रयास करना चाहिए। मौन के दौरान ईश्वर विषयक चिन्तन मनन करते हुए अपने अन्दर सद्गुणों के विकास का प्रयास करना चाहिए।

मौनी अमावस्या पर आप सभी मित्रों और शुभेच्छुओं को बहुत बहुत बधाई और अशेष मंगल कामना।