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एयर इंडिया टाटा के सुपुर्द

अब होगा हवाई अड्डों का कायाकल्प एयर इंडिया को टाटा ग्रुप उड़ायेगा। केन्द्र सरकार ने टाटा ग्रुप को एयर इंडिया का मैनेजमेंट सौंप दिया है। सरकार के एयर इंडिया के विनिवेश करने के फैसले के बाद कुछ एविशेन सेक्टर के कथित जानकार सरकार के फैसले की बिना कुछ सोचे समझे निंदा भी कर रहे थे। हालांकि उनके पास एयर इंडिया को फिर से मुनाफे में लाने का कोई ठोस सुझाव होने का सवाल भी नहीं था। अब टाटा ग्रुप एयर इंडिया की सब्सिडियरी कंपनियों एयर इंडिया एक्सप्रेस और एयरपोर्ट सर्विस कंपनी को भी देखेगा। एयर इंडिया के बेड़े में आज के दिन 146 विमान हैं जिनकी औसत उम्र आठ साल की है। इसके अलावा, एयर इंडिया के नए मालिक को एयर इंडिया की बहुत सी अचल संपतियां भी तो मिलेंगी। इस बीच, एयर इंडिया की ब्रिकी के बाद देश के दर्जनों हवाई अड्डों का भी स्वाभाविक और निश्चित रूप से काया कल्प होगा।

हरिश्चंद्र शर्मा

दरअसल, सरकार के सामने एयर इंडिया को बेचने के अतिरिक्त दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं बचा था। सरकार को एयर इंडिया की वजह से एक साल में जितना घाटा होता है उतने में तो एक नई एयरलाइंस ही शुरू की जा सकती है। एयर इंडिया दिन-रात घाटे और पैसों की कमी से जूझ रही है। इधर हाल के सालों में इसे और ज्यादा आॅपरेटिंग कॉस्ट और फॉरेन एक्सचेंज लॉस के चलते भारी घाटा उठाना पड़ा है। बढ़ते तेल के दाम और पाकिस्तान द्वारा अपनी सीमा में भारतीय विमानों के लिए एयरस्पेस बंद करने के बाद एयर इंडिया को रोज 3 से 4 करोड़ रुपये का अतिरिक्त घाटा उठाना पड़ रहा है। बेशक, एयर इंडिया की बिक्री के बाद सरकार का सारा फोकस देश के छोटे- बड़े शहरों में नए हवाई अड्डों के निर्माण और उनके विस्तार पर ही रहेगा। सरकार कह भी चुकी है कि साल 2024 तक देश में बनेंगे 100 नए एयरपोर्ट। पुराने हवाई अड्डों को बेहतर भी बनाया जाएगा। कुछ हवाई अड्डों को सही मानें तो फौरन बेहतर बनाने की जरूरत तो है ही । कुछ समय पहले लद्दाख घूमकर वापस लौटे एक मित्र बता रहे थे कि वहां पर देशभर से रोज सैकड़ों पर्यटक आ रहे है। पर लेह हवाई अड्डा किसी प्रदेश की राजधानी के हवाई अड्डे जैसा तो बिलकुल ही नहीं लगता। वहां के शौचालयों तक में भी बहुत सुधार की गुजाइंश है। अगर कोरोना काल को छोड़ दिया जाए तो देश का एविएशन सेक्टर बीते कुछेक सालों में लंबी उड़ान भर रहा है। सन 1990 तक दिल्ली-मुंबई के बीच रोज सुबह झ्र शाम दो-दो μलाइटें चलती थीं। कोरोना काल से पहले इनकी संख्या 100 पार कर गई थी । इनमें चार्टर्ड μलाइट शामिल नहीं हैं। क्या आप मानेंगे कि दुनिया के टॉप- 10 हवाई अड्डों में भारत के दो हवाई अड्डों क्रमश बेंगलुरु का केम्पेगोडा हवाई अड्डा दूसरे स्थान पर तथा दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा छठे नंबर पर है? यह निष्कर्ष है ग्लोबल एयरलाइंस इवेंट आॅर्गनाइजर रूट्स आॅनलाइन नाम की संस्था का। बेंगलुरु के केम्पेगोडा एयरपोर्ट पर 2018 के पहले छह महीनों में लगभग 41,80,852 यात्रियों की बढ़त के साथ रेकॉर्ड 1,58,50,352 यात्री आए। वहीं दिल्ली के एयरपोर्ट से जनवरी से लेकर जून तक इस साल 3,49,05,629 यात्रियों ने यात्रा की जो पिछले साल के मुकाबले इस बार 32,76,183 मुसाफिर अधिक थे। इस सर्वे में पहले स्थान पर तोक्यो का हनेदा हवाई अड्डा रहा। दरअसल देश में मिडिल क्लास की बढ़ती संख्या और एविएशन सेक्टर का विकास एक दूसरे से जुड़े हैं। चूंकि मिडिल क्लास ने अब हवाई यात्रा धड़ल्ले एयर इंडिया की ब्रिकी क्यों जरूरी है एविएशन सेक्टर के लिए एयर इंडिया को टाटा ग्रुप उड़ायेगा या स्पाइस जेट, इस बात का फैसला होने में अब बहुत वक्त शेष नहीं रह गया है। माना जा रहा है कि केन्द्र सरकार टाटा ग्रुप और स्पाइसजेट में से किसी एक के द्वारा एयर इंडिया को टेक ओवर करने के दावे पर अंतिम निर्णय लेने ही वाली है। सरकार एयर इंडिया से अपनी हिस्सेदारी को बेच देगी। सरकार के एयर इंडिया के विनिवेश करने के फैसले के बाद कुछ एविशेन सेक्टर के कथित जानकार सरकार के फैसले की बिना कुछ सोचे समझे निंदा भी कर रहे थे। हालांकि उनके पास एयर इंडिया को फिर से मुनाफे में लाने का कोई ठोस सुझाव होने का सवाल भी नहीं था। जिसे अंतत: एयर इंडिया मिलेगी उसे ही इसकी सब्सिडियरी कंपनी एयर इंडिया एक्सप्रेस और एयरपोर्ट सर्विस कंपनी को भी स्वाभाविक रूप से सौंप दिया जाएगा। एयर इंडिया के लिए चुने गए खरीदार को 32,447 करोड़ रुपये की ऋण और देनदारियां भी तो ट्रांसफर की जाएंगी। एयर इंडिया के बेड़े में आज के दिन 146 विमान हैं जिनकी औसत उम्र आठ साल की है। इसके अलावा, एयर इंडिया के नए मालिक को एयर इंडिया की बहुत सी अचल संपतियां भी तो मिलेंगी। से शुरू कर दी है, इसलिए नए-नए हवाई अड्डों के निर्माण की आवश्यकता महसूस हो रही है। यह क्रम अगले कई दशकों तक जारी रहने वाला है। इसका सीधा असर यह हो रहा है कि देश के एविएशन सेक्टर में रोजगार के अवसर भी तो भरपूर पैदा हो रहे हैं। यह स्थिति सुखद है। अब छोटे और मझोले शहरों के हवाई अड्डों के अंदर- बाहर भी मुसाफिरों की भीड़ लगी रहती है। ये सब देश-विदेश आ-जा रहे होते हैं। इनमें किसी रेलवे स्टेशन जैसा ही मंजर दिखाई देता है। लखनऊ, अमृतसर, पटना, त्रिचि, नागपुर जैसे शहरों के हवाई अड्डों में भी हमेशा ही भीड़ लगी रहती है। यह तस्वीर है नए भारत के हवाई अड्डों की। अब बिहार के दरभंगा एयरपोर्ट को ही लें। यह लगातार लोकप्रिय होता जा रहा है। दरभंगा एयरपोर्ट ने प्रति विमान औसत बुकिंग में पटना एयरपोर्ट को भी पीछे छोड़ दिया है। पटना के एक विमान में जहां औसतन 110 से 125 यात्रियों की आवाजाही हो रही है। वहीं दरभंगा में यह औसत 150 के आसपास है। अभी दरभंगा से मात्र 10 जोड़ी विमानों की ही आवाजाही है। किसी-किसी दिन 12 विमानों की भी आवाजाही होती है। यह हाल तब है जब दरभंगा से मात्र दो विमानन कंपनियों स्पाइस जेट और इंडिगो ने सेवाएं देनी अभी तक शुरू की है । अभी अहमदाबाद, बेंगलुरु, हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई, और कोलकाता के लिए दरभंगा के लिये उड़ानें उपलब्ध हैं। इन प्रमुख शहरों से सीधी कनेक्टिविटी की वजह से इस शहरों से आने जाने वाले उत्तर बिहार के यात्री और नेपाल की तराई से लोग पटना नहीं आ रहे हैं, जिसका सीधा असर पटना में विमानों की बुकिंग पर पड़ा है। अब सरकार दरभंगा एयरपोर्ट का आकार बढ़ा कर वर्तमान से चौगुना करना चाहती है। फिलहाल नागरिक उड्डयन विभाग की ओर से दरभंगा एयरपोर्ट के लिए 78 एकड़ जमीन की मांग की गई है, जबकि वर्तमान में दरभंगा एयरपोर्ट 22 एकड़ में बना है। देश की बहुत बड़ी आबादी अब रेल के स्थान पर हवाई सफर करना बेहतर और किफायतमंद मानती है। इनके पास पैसा है, पर वक्त की कमी है। इसलिए ये हवाई यात्रा पसंद करते हैं। एक बात तय है कि एयर इंडिया की ब्रिकी के बाद हमारे देश के लगभग सब एयरपोर्ट विश्व स्तरीय हो जाएंगे। उनमें यात्रियों को हर तरह की सुविधायें मिलने लगेगी। तो इन्हीं कारणों से एयर इंडिया की ब्रिकी देश के एविएशन सेक्टर के लिए बहुत जरूरी है। देखिए सरकार के सामने एयर इंडिया को बेचने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। अब उसका फोकस रहेगा कि हवाई अड्डों को विश्व स्तरीय बनाया जाए। ?