केजरीवाल की फरेब के सहारे सफरकरने की कोशिश
दिल्ली में महिलाएं मेट्रो रेल और डीटीसी बसों में मुμत सफर कर सकेंगी। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की इस घोषणा के बाद अब किसी को शक नहीं होना चाहिए कि उनका एकमात्र
मकसद सारी व्यवस्था को ही चौपट कर देना है। अरविंद केजरीवाल यह सब पैंतरेबाजी इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि अगले साल दिल्ली विधानसभा के होने वाले चुनाव पर ही उनकी नजर हैं। हालिया लोकसभा चुनाव में उनकी आम आदमी पार्टी (आप) को जनता ने दिल्ली और शेष अन्य राज्यों में पूरी तरह से खारिज करके रख दिया है। दिल्ली में आप के सातों उम्मीदवार कहीं भी मुकाबले तक में नहीं दिखाई दिए।
आर.के. सिन्हा
अब केजरीवाल को लगता है कि वे मेट्रो और डीटीसी बसों में मुμत यात्रा का औरतों को झुनझुना पकड़ा कर आगामी दिल्ली विधान सभा का चुनाव जीते लेंगे। अगर केजरीवाल सभी महिलाओं के लिए मुफ्त सेवा न देकर इसे किसी एक खास वर्ग की महिलाओं तक सीमित रखते तो भी कोई बात होती। जैसे कि वे स्कूल-कॉलेजों में पढ़ने वाली लड़कियों को किराए से मुक्ति दिलवा सकते थे। दैनिक मजदूरी, आया नर्स को यह सुविधा दे सकते थे । पर वे तो लैंगिक आधार पर यह सुविधा दे रहे हैं। क्या महिलाओं ने इस तरह की कोई मांग की थी? क्या दिल्ली की सभी महिलाओं की माली हालत इतनी खराब है कि वे अपना मेट्रो या बसों का किराया भी देने की स्थिति में भी नहीं हैं? क्या दिल्ली मेट्रो और डीटीसी बसों में दिल्ली के बाहर रहने वाली महिलाओं को भी मुफ्त यात्रा करने की सुविधा देंगे? या मात्र दिल्ली के मतदाताओं को? इन सब सवालों के जवाब केजरीवाल को देने होंगे। उदाहरण के रूप में क्या जब नोएडा, वैशाली, फरीदाबाद, गुड़गांव जैसे एनसीआ? शहरों में रहने वाली महिलाएं दिल्ली आएंगी तो उन्हें कोई टिकट लेना होगा या नहीं? यानी उनकी एक घोषणा से चौतरफा कंफ़्यूजन की स्थिति पैदा हो गई है। कुछ मातायें तो इसलिये परेशान हैं कि उनकी जवान बेटियां जब मर्जी चकल्लस के लिए उनके पास आना ही नहीं पड़ेगा। दरअसल रक्षाबंधन जैसे कुछ अवसरों पर दिल्ली की महिलाओं को डीटीसी की बसों में मुμत सफर करने की सुविधा का सिलसिला तो कई साल पहले से ही चल रहा है। पर अब तो केजरीवाल कह रहे हैं कि वे औरतों से डीटीसी और मेट्रो में सफर करने का कोई पैसा लेंगे ही नहीं। यह बेहद गलत निर्णय है। इसके पीछे कोई तर्क समझ नहीं आता। हर की हताशा में लिया गया निर्णय लगता है । बेशक, यदि केजरीवाल मेट्रो रेल के किराए कुछ कम करवा देते तो इससे सबको राहत मिलती। जो मेट्रो में सफर करते हैं उन्हें मालूम है कि अब मेट्रो में सफर करना दिन व दिन महंगा ही होता जा रहा है। वैसे भी मेट्रो का सफर डीटीसी की बसों की तुलना में तो वैसे ही काफी महंगा है। इस बीच, सबसे अच्छी बात तो यह सामने आ रही है कि केजरीवाल के कदम से औरतें भी प्राय: खुश नहीं हैं। उन्हें भी समझ आ रहा है कि बड़बोले केजरीवाल मुμत की राजनीति के चक्कर में भूल गए हैं कि उनकी सरकार यह तिरिक्त खर्चा कहां से वहन करेगी ? क्या सरकार करदाताओं से यह पैसा नहीं वसूलेगी? केजरीवाल को चाहिए कि वे पहले दिल्ली में नई बसें लेकर आएं और मेट्रो ट्रेनों का ठीक से रख-रखाव करें। आजकल लगातार देखने में आ रहा कि मेट्रो रेल का परिचालन तकनीकी कारणों से आये दिन प्रभावित हो जाता है। इससे लाखों लोगों को असुविधा होती है। वे अपने गंतव्य स्थलों पर वक्त पर पहुंच नहीं पाते हैं। केजरीवाल का इस तरफ तो कोई ध्यान नहीं है। वे तो विशुद्ध सियासत की राजनीति कर रहे हैं। अरविंद केजरीवाल नाटक करने में माहिर हो चुके हैं। उन्होंने वास्तव में भारतीय राजनीति को बदबूदार कर दिया है। रामलीला मैदान में वे देश के तिरंगे का इस्तेमाल अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए करते थे। अब वे ईवीएम में गड़बड़ी की बातें करते हैं। वे करप्शन से लड़ने का दावा करते थे। पर करप्शन के खिलाफ की गई नोटबंदी का वे विरोध कर रहे थे। केजरीवाल को याद रखना चाहिए कि यदि महिलाएं पुरुषों के साथ बराबर काम कर सकती हैं तो वे मेट्रो का किराया भी दे सकती हैं। दिल्ली के जागरूक मतदाताओं को पता है कि डीटीसी और मेट्रो में मुμत सफर करने का प्रलोभन किस कारण से दिया जा रहा है। सच में केजरीवाल बिना-सोचे समझे अपनी योजनाए दिल्ली में लागू करके जनता को परेशान करते रहे हैं। उन्होंने राजधानी में बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर आॅड-ईवन स्कीम को लागू किया था। सब को याद है कि उनकी आँड ईवन स्कीम ने जनता की परेशानियों को कितना बढ़ा दिया था। जब भी आँड ईवन स्कीम को लागू किया गया तब भी दिल्ली में जिंदगी पंगु हो गई। हैसियत वालों ने कारें खरीद लीं ताकि वे आँड और इवन दोनों का आनंद उठा सकें। दरअसल केजरीवाल वादे- दावे करने में माहिर हो चुके हैं। वे बार-बार कहते हैं कि दिल्ली के स्कूलों के हालात सुधर गए हैं। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति कर दी है। केजरीवाल से पूछा जाना चाहिए कि क्या स्कूलों की इमारतें बनाना ही पर्याप्त है? क्या स्कूलों के शिक्षकों का स्तर सुधरा? क्या उन्होंने दिल्ली के स्कूली शिक्षकों के मसलों को सुलझाया? अब भी दिल्ली के स्कूलों में बड़ी संख्या में अस्थायी अध्यापक पढ़ा रहे हैं? ये शिक्षक बंधुआ मजदूरों की तरह ही काम करने को अभिशप्त हैं। केजरीवाल बताएं कि पुरानी दिल्ली यानी दिल्ली-6 और बाहरी दिल्ली के स्कूलों में विज्ञान की कक्षाएं कितने स्कूलों में उपलब्ध हैं? आपको जानकार यकीन नहीं होगा कि उपर्युक्त स्कूलों में विज्ञान की न कक्षाएं लगती हैं और ना इनमें विज्ञान के अध्यापक हैं। जाहिर है, केजरीवाल इन सवालों के जवाब कभी नहीं देंगे। केजरीवाल के साथ दिक्कत यही है कि वे एक अराजकतावादी किस्म के इंसान हैं। उन्हें लगता है कि किसी राज्य की सरकार को उसी तरह से चलाया जा सकता है जैसे किसी एनजीओ को चलाया जाता है। पहले तो केजरीवाल अपने हरेक राजनीतिक विरोधी पर मिथ्या आरोप लगा देते थे। उन्होंने कपिल सिब्बल, अरुण जेटली से लेकर अकाली दल नेता बिक्रम सिंह मजीठिया पर आधारहीन आरोप लगाने के बाद कोर्ट में बेशर्मी पूर्वक माफी मांगी। केजरीवाल ने मजीठिया पर नशे के कारोबारियों से संबंध रखने के आरोप लगाए थे। पर बाद में जब वे फंसने लगे तो उन्होंने माफी मांग ली। केजरीवाल अब हाथ-पांव मार रहे हैं ताकि किसी तरह से दिल्ली की जनता का विश्वास अर्जित करके फिर से सत्ता पर काबिज हो जाएं। वे औरतों को अपने पक्ष में करने की चेष्टा कर रहे हैं। पर लगता नहीं है कि फरेब के सहारे वे अपने सफर को पूरा कर सकेंगे। ?