सितारों की राजनीति
संपादकीय
लोकसभा चुनाव में गैर-राजनीतिक सिलेब्रिटीज को सीधे चुनाव में उतार देना भारतीय राजनीति का एक ट्रेंड बन गया है। इस बार शुरू में यह थोड़ा कमजोर पड़ता लगा लेकिन समय बीतने के साथ 2019 के चुनाव में इससे जुड़े सारे रेकॉर्ड टूटते नजर आ रहे हैं। आधा चुनाव निकल जाने के बाद भी खेल और फिल्मों से सितारों को टिकट दिए जाने का सिलसिला जारी है। लगता है, राजनीतिक दलों में इतना आत्मविश्वास नहीं है कि वे अपने योग्य, समर्पित लेकिन कम चर्चित नेताओं-कार्यकतार्ओं पर दांव लगा सकें।
दूसरी बात यह कि हमारा देश नायकत्व मोह से नहीं उभर पाया है। जनता इतनी परिपक्व नहीं हुई है कि अनजान चेहरों को सिर्फ उनके गुणों या कामकाज के आधार पर चुन ले। अमेरिका में चुनावी प्रक्रिया इतनी लंबी होती है कि एकदम अनाम-सा उम्मीदवार भी वोट पड़ने तक अपनी अलग पहचान बना लेता है।
लेकिन भारत में अक्सर लोग उम्मीदवार की शक्ल पहचाने बगैर ही वोट डाल आते हैं। इसीलिए राजनीतिक पार्टियां खासकर उन क्षेत्रों में, जहां उन्हें अपना पिछला प्रत्याशी बदलना होता है, ऐसा कैंडिडेट खड़ा करना चाहती हैं जिसका नाम लोगों को पता हो, भले ही उसका वास्ता कभी राजनीति के ‘र’ से भी न रहा हो। कारण यह कि लोग उनका नाम पहले से जान रहे होते हैं। बीजेपी ने बॉलिवुड एक्टर सनी देओल को पंजाब की गुरदासपुर सीट से मैदान में उतारा है जबकि मशहूर गायक हंसराज हंस को उत्तर-पश्चिमी दिल्ली से और क्रिकेटर गौतम गंभीर को पूर्वी दिल्ली से टिकट दिया है। इसके अलावा भोजपुरी फिल्मों के एक स्टार रवि किशन को उसने यूपी के गोरखपुर से और दूसरे स्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को बगल में आजमगढ़ से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के मुकाबले खड़ा किया है। उधर कांग्रेस के टिकट पर ओलिंपिक पदक विजेता बॉक्सर विजेंद्र सिंह दक्षिणी दिल्ली से और बॉलिवुड एक्ट्रेस उर्मिला मातोंडकर उत्तरी मुंबई से अपनी किस्मत आजमा रही हैं। क्षेत्रीय दलों में टीएमसी ने एक्ट्रेस और मॉडल नुसरत जहां और मिमी चक्रवर्ती को चुनाव लड़ने का मौका दिया है।
दमदार एक्टर प्रकाश राज कर्नाटक की बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। राजनीति में अब वही सितारे आ रहे हैं, जो अपने क्षेत्र में ढलान पर होते हैं। सनी देओल से लेकर उर्मिला मातोंडकर, गौतम गंभीर और विजेंद्र तक का हाल ऐसा ही है। जाहिर है, राजनीति इनके लिए करियर की दूसरी पारी जैसी है, जहां इन्हें एंट्री बड़ी आसानी से मिल जाती है। लेकिन हाल में जितने भी सितारे संसद पहुंचे, बतौर सांसद उनके प्रदर्शन में ऐसा कुछ भी नहीं दिखा, जिससे नए सितारों के राजनीति में आने से कोई उम्मीद पैदा होती हो। कुल मिलाकर इनकी भूमिका चुनाव में किसी पार्टी को थोड़ा और कवरेज दिलाने तक ही सीमित रहती है।
डॉ. वंदना पालीवाल