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अपनी कविता और भाषणों से भारतीयता की अलख जगाने वाली कवयित्री थीं सरोजिनी नायडू

अपनी आवाजकी खनक सेश्रोताओं कोसहज ही आकर्षित करने वालीकवयित्री सरोजिनी नायडू एकदमदार शख्सियत की स्वामिनीथीं। बुलबुल-ए-हिन्द, भारत-कोकिला, ज्वेल फ्रॉम ईस्टसरीखे उपनामों से संबोधितइस भारत की बेटी को आजउनके 73वें पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित है। सरोजिनी काव्यक्तित्व भावनाओं के उतार-चढ़ाव से गुजरता हुआ एकसच्चे देशभक्त के रूप में सामनेआया और भारतीय स्वाधीनताकी कहानी का महत्वपूर्णअध्याय बनकर इतिहास केपन्नों पर अपनी अमिट छापअंकित कर गया।

सरोजिनी प्रख्यात शिक्षाविद् व वैज्ञानिक अघोरनाथचट्टोपाध्याय एवं सुप्रसिद्ध लेखिका, कवयित्री औरगायिका वरदसुन्दरी देवी की पहली संतान थीं,जिनका जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद मेंहुआ था। पिता ने उनके जन्म के दो वर्ष पूर्व हीएडिनबर्ग विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि लीथी और हैदराबाद आकर निजाम कॉलेज कीस्थापना कर यहाँ के प्रथम प्रिंसिपल नियुक्त हुए।सरोजिनी का परिवार मूलत: बंगाल प्रोविन्स केब्राह्मण गाँव बिक्रमपुर (अब बांग्लादेश का हिस्साहै) से आकर हैदराबाद में बस गया था और जल्दही यहाँ के प्रतिष्ठित परिवारों में शुमार हो गया। एकबंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मीं सरोजिनी आठभाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। पिता भारतीयस्वतंत्रता संग्राम और हैदराबाद से भारतीय राष्ट्रीयकांग्रेस के प्रथम सदस्य थे। एक भाई विरेंद्रेनाथचट्टोपाध्याय क्रन्तिकारी थे और स्वतंत्रता संग्राम मेंसक्रिय रहे। छोटी बहन सुहासिनी भी स्वतंत्रतासंगाम में सक्रिय थीं। उन्होंने पहले शिक्षिका, फिरभारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की पहली महिला सदस्यबनकर और बाद में एक समाजसेवी के रूप मेंस्वयं को प्रतिष्ठित किया। सबसे छोटे भाई हरीन्द्रनाथचट्टोपाध्याय एक जाने-माने अंगेजी कवि,नाटककार, अभिनेता और फिर राजनीतिज्ञ बनकरउभरे। सरोजिनी की पारिवारिक पृष्ठभूमि उनकेव्यक्तित्व को समझने में अहम् भूमिका निभाती है।पिता उन्हें अपने समान वैज्ञानिक बनाना चाहतेथे किन्तु माँ सरोजिनी में एक कवयित्री को बड़ाहोता देख रहीं थीं। बचपन से विलक्षण रहींसरोजिनी ने मात्र बारह बर्ष की उम्र में समूचे मद्रासप्रोविन्स से मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में प्रथम स्थानप्राप्त कर सबको अचंभित कर दिया था। माँ काअन्देशा तब सही साबित हुआ जब एक दिनसरोजिनी की गणित की नोटबुक में पिता ने 1300पंक्तियों की कविता द लेडी आॅफ द लेक और2000 पंक्तियों का नाटक मेहर-मुनीर लिखा पाया।एक छोटी बच्ची की अंग्रेजी भाषा पर इतनी अच्छीपकड़ से खुश होकर हैदराबाद के तत्कालीननिजाम ने उन्हें आगे पढ़ने के लिए वजीफा दियाजिसके तहत सरोजिनी पहले किंग्स कॉलेज, लन्दनऔर फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के गिर्टन कॉलेजभेजी गयीं। कॉलेज के अनुकूल वातावरण मेंसरोजिनी का कवि मन मुखरित हुआ और उन्होंनेकई कविताओं की रचना की। हालांकि, उनकीकविताओं को पढ़कर उनके एक प्राध्यापक एडविनगॉस ने उन्हें अंगेज कवियों की नकल न करकेभारतीय परिप्रेक्ष्य व भारतीयता को मूल में रखकरलिखने की सलाह दी। गॉस की बातों का उनपरजादुई असर हुआ और उनकी कविताओं को एकनई शक्ल मिली। सितम्बर 1898 में सरोजिनीइंग्लैड से भारत आयीं और इसी वर्ष दिसम्बर में डॉ.गोविन्दराजुलू नायडू (गैर-ब्राह्मण) से अन्तर्जातीयविवाह किया जो उस जमाने के लिए बहुत बड़ीऔर निन्दनीय बात थी, किन्तु पिता के सहयोग सेइस विवाह की गरिमा बनी रही और यह नवविवाहित्ा दम्पति द गोल्डन थ्रेशोल्ड, हैदराबादविश्वविद्यालय का वह भवन जहाँ यहाँ के पहलेप्राचार्य डॉ. अघोरनाथ जी का निवास था, में आकररहने लगे। यही द गोल्डन थ्रेशोल्ड सरोजिनी नायडूकी पहली काव्य-संग्रह का शीर्षक बनी जिसे1905 में विलियम हाइनमैन ने इंग्लॅण्ड में प्रकाशितकिया था। यह पुस्तक इंग्लॅण्ड में बहुत सफल हुईऔर जल्द ही इसकी सभी प्रतियाँ बिक गयीं। उनकीदूसरी काव्य-संग्रह द बर्ड आॅफ टाइम झ्र सॉंन्ग्सआॅफ लाइफ, डेथ एंड स्प्रिंग प्रकाशित हुई जिसेलन्दन और न्यू यॉर्क दोनों जगहों से निकला गया।1915-16 में उनकी तीसरी काव्य-संग्रह द ब्रोकनविंग – सॉंन्ग्स आॅफ लाइफ, डेथ एंड डेस्टिनीप्रकाशित हुई जिसे पढ़कर रविन्द्रनाथ टैगोर नेसरोजिनी को लिखा, द ब्रोकन विंग्स की तुम्हारीकविताएँ मानो आँसू और अँगारों से लिखी गयी हों;जैसे जुलाई माह के शाम के बादल सूर्यास्त कीलालिमा में दमक रहे हों।एक कवयित्री के रूप में विख्यात हो चुकींसरोजिनी को जीवन का असल उद्देश्य गाँधी जी सेमिलने के बाद प्राप्त हुआ, जब उनके सोचने कानजरिया बदल कर देशप्रेम और स्वराज की औरमुखातिब हुआ।गाँधी जी के व्यक्तित्व और आदर्शों से प्रभावितसरोजिनी नायडू ने समय-समय पर भारत केस्वाधीनता संग्राम की अगुआई की और कई दफेगाँधीजी के स्थान पर कुशल नेतृत्व करते हुएअपनी राजनैतिक दक्षता का परिचय दिया।जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड की भर्त्सना करते हुएउन्होंने अपना केसर-ए-हिन्द का खिताब लौटादिया था और 1920 में, लन्दन में एक समूह कोसंबोधित करते हुए कहा था, “ठङ्म ल्लं३्रङ्मल्ल ३ँं३१४’ी२ ु८ ३८१ंल्लल्ल८ ्र२ ा१ीी. क३ ्र२ ३ँी २’ं५ी ङ्मा ्र३२ङ्म६ल्ल ीि२स्रङ्म३्र२े.”सरोजिनी नायडू की सक्रियता और बढ़तीलोकप्रियता अमेरिका तक महसूस की गयी।न्यूयॉर्क टाइम्स मैगजीन की 14 फरवरी, 1926,अंक में सरोजिनी पर एक समूचे पृष्ठ का आलेखअ जॉनआॅफ आर्क राइजेज टू इन्सपायर इण्डियाशीर्षक से प्रकाशित हुई। 1928 में गाँधीजी कीप्रतिनिधि बनकर सरोजिनी न्यूयॉर्क आयीं औरअपने उद्बोधन से अमेरिका को भारतीय परंपरा,भारतीय विचारधारा तथा भारतीयता के मायनेबतलाये। अमेरिकी अखबार उनकी तारीफों से पटगए और उन्हें ज्वेल फ्रॉम द ईस्ट की संज्ञा दी।गाँधी जी की डांडी यात्रा में वे कंधे-से-कंधामिलाकर चलीं और गाँधीजी के जेल जाने के बादकमान अपने हाथों में ले एक ओजस्वी नेतृत्व कापरिचय दिया। उनका साहस, सच बोलने की ताकतऔर अपनी बात पर टिके रहने की जिद उन्हें एकसशक्त व्यक्तित्व की मालकिन और हजारों भारतीयोंके लिए सम्माननीय बनाता था। वे न सिर्फभारतवासियों को आजाद भारत के स्वप्न देखने कोप्रेरित करती थीं, बल्कि अंग्रेजी हुकूमत की जमकरभर्त्सना और उनके अनुचित कदमों के लिएखुलकर विरोध भी करती रहीं। 15 अगस्त 1947को देश की आजादी के साथ ही वे काँग्रेस पार्टी कीपहली महिला उम्मीदवार के रूप में उत्तर प्रदेशप्रेसिडेंसी की पहली महिला गवर्नर बनीं। आजादहिन्द के लिए अभी बहुत काम होने थे और वेतत्परता से अपनी इस नई और महत्वपूर्ण भूमिकामें लगी रहीं। किन्तु स्वास्थ्य ने उनका साथ नहींदिया और 2 मार्च 1949 को अपने कानपुरकार्यालय (गवर्नर हाउस) में ही हृदयाघात सेउनकी मृत्यु हो गयी। जीवन के अन्तिम क्षण तकतक कार्य में लीन इस वीरांगना का जीवन प्रत्येकभारतीय के लिए एक प्रेरणास्रोत है। 􀂄सरोजिनी नायडू की सक्रियताऔर बढ़ती लोकप्रियताअमेरिका तक महसूस की गयी।न्यूयॉर्क टाइम्स मैगजीन की 14फरवरी, 1926, अंक मेंसरोजिनी पर एक समूचे पृष्ठका आलेख अ जॉनआॅफ आर्कराइजेज टू इन्सपायर इण्डियाशीर्षक से प्रकाशित हुई। 1928में गाँधीजी की प्रतिनिधि बनकरसरोजिनी न्यूयॉर्क आयीं औरअपने उद्बोधन से अमेरिका कोभारतीय परंपरा, भारतीयविचारधारा तथा भारतीयता केमायने बतलाये। अमेरिकीअखबार उनकी तारीफों से पटगए और उन्हें ज्वेल फ्रॉम द ईस्ट की संज्ञा दी।

दीपा लाभ