विश्व जल दिवस: मालवा बनेगा भविष्य का रेगिस्तान
कहा जाता रहा है कि मालवा भूमि गहन गंभीर,पग-पग रोटी डग-डग नीर। लोग पानी के लिएपग-पग नहीं 10-10 किलोमीटर तक का सफरकरते हैं। जमीन में 1000 फुट नीचे चला गया हैपानी और वैज्ञानिक कहते हैं कि 1200 फुट केबाद समुद्र का खारा जल शुरू हो जाता है। आखिरनर्मदा कब तक मालवा की प्यास बुझाती रहेगी। आखिर ऐसा क्यों हुआ? विकास के नाम पर जिसतरह से मालवा के पेड़ और पहाड़ों का काटा गयाहै उसे देखकर पर्यावरण प्रेमी का दु:ख कोईविकास प्रेमी नहीं समझ सकता। मालवा की प्रमुखनदियों में नर्मदा, क्षिप्रा, चंबल और कालिसिंध कीदुर्दशा के बारे में सभी जानते हैं। बांध ने मार दियानर्मदा को, शहरीकरण और लोगों ने सूखा दियाक्षिप्रा व कालिसिंध को और चंबल नदी केआसपास के जंगलों की कटाई के कारण अबडाकू तो नहीं रहे, लेकिन नदी भी नदारद होने लगीहै। माही और बेतवा नदी का नाम तो कोई शायदही जानता हो। कुएं, कुंड, तालाब और अन्यजलाशयों की जगह ट्यूबवेल ले चुके हैं। असंख्यट्यूबवेलों ने मालवा की धरती को भीष्म पितामहके शरीर की तरह छलनी कर दिया है।पहले कहते थे कि सुबह देखना हो तो बनारसकी देखो, शाम देखना हो तो अवध की देखो,लेकिन शब अर्थात रात देखना हो तो मालवा कीदेखो। परंतु विकास के नाम पर अब सब कुछमटियामेट कर दिया गया है। अब गर्मी में रातों कोगर्म हवाओं का डेरा रहता है। बारिश में भी सौंधीमाटी की सुगंध अब कहां रही। विंध्याचल कीपर्वत श्रेणियों का अस्तित्व अब खतरे में हैं। बहुतसे शहर जहां पर पर्वत, पहाड़ी या टेकरी हुआकरते थे अब वहां खनन कंपनियों ने सपाट मैदानकर दिए है। पर्वतों के हटने से मौसम बदलने लगाहै। गर्म, आवारा और दक्षिणावर्ती हवाएं अबज्यादा परेशान करती है। हवाओं का रुख भी अबसमझ में नहीं आता कि कब किधर चलकर कहरढहाएगा। यही कारण है कि बादल नहीं रहे संगठिततो बारिश भी अब बिखर गई है। झाबुआ औरजबलपुर के जंगल के नाम पर अब मालवा केपास शेर-हिरण को देखने के लिए राष्ट्रीय पार्क हीबचे हैं। वहां भी अवैध कटाई-चराई और जानवरोंकी खाल नोंचने का सिलसिला जारी है। अब तोदो शहरों या दो कस्बों के बीच ही थोड़ी बहुतहरियाली बची है जहां भयभीत होकर खड़े हुए हैंवृक्ष।वृक्षों के कटने से पक्षियों के बसेरे उजड़ गएतो फिर पक्षियों की सुकूनदायक चहचहाहट भीअब शहर से गायब हो गई है। अब प्रेशर हॉर्न हैजो आदमी के दिमाग की नसों फाड़कर रख देताहै। आदमी मर जाएगा खुद के ही शोर से। नर्मदाकी घाटी के जंगलों की लगातार कटाई से कईदुर्लभ वनस्पतियां अब दुर्लभ भी नहीं रहीं। जंगलबुक अब सिर्फ किताबी बातें हैं। खबर में आया हैकि समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है और आने वालेसमय में बहुत से तटवर्ती नगर डूब जाएंगे। यदिवृक्षों को विकास के नाम पर काटते रहने की यहगति जारी रही, तो भविष्य में धरती पर दो ही तत्वोंका साम्राज्य रहेगा- रेगिस्तान और समुद्र। समुद्र मेंजीव-जंतु होंगे और रेगिस्तान में सिर्फ रेत।सहारा और थार रेगिस्तान की लाखों वर्ग मीलकी भूमि पर पर्यावरणवादियों ने बहुत वर्ष शोधकरने के बाद पाया कि आखिर क्यों धरती के इतनेबड़े भू-भाग पर रेगिस्तान निर्मित हो गए। उनकेअध्ययन से पता चला कि यह क्षेत्र कभी हराभराथा, लेकिन लोगों ने इसे उजाड़ दिया। प्रकृति नेइसका बदला लिया, उसने तेज हवा, धूल, सूर्य कीसीधी धूप और अत्यधिक उमस के माध्यम सेउपजाऊ भूमि को रेत में बदल दिया और धरती केगर्भ से पानी को सूखा दिया। और फिर चला मानवको खतम करने का चक्र। लोग पानी, अन्न औरछाव के लिए तरस गए। लोगों का पलायन औररेगिस्तान की चपेट में आकर मर जाने कासिलसिला लगातार चलता रहा। उक्त पूरे इलाके मेंसिर्फ चार गति रह गई थी- तेज धूप, बाढ़, भूकंपऔर रेतीला तूफान। यदि यही हालात रहे तोभविष्य कहता है कि बची हुई धरती पर फैलताजाएगा रेगिस्तान और समुद्र।डॉ. वंदना पालीवालसहारा और थार रेगिस्तान की लाखोंवर्ग मील की भूमि पर पर्यावरणवादियोंने बहुत वर्ष शोध करने के बाद पाया किआखिर क्यों धरती के इतने बड़े भू-भाग पर रेगिस्तान निर्मित हो गए।उनके अध्ययन से पता चला कि यहक्षेत्र कभी हराभरा था, लेकिन लोगों नेइसे उजाड़ दिया। प्रकृति ने इसकाबदला लिया, उसने तेज हवा, धूल, सूर्यकी सीधी धूप और अत्यधिक उमस केमाध्यम से उपजाऊ भूमि को रेत मेंबदल दिया और धरती के गर्भ से पानीको सूखा दिया।