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भयंकर हादसों में मुंह फेर कब तक सोते रहेंगे हम?

23 दिसम्बर,1995 को हरियाणा के मंडी डबवाली और 13 जून,1997 को राजधानी के उपहार सिनेमाघर में हुए दिल-दलहाने वाले अग्निकांडों के बाद 12 फरवरी,2019 की तिथि भी इन्हीं मनहूस तिथियों की सूची में शामिल हो गई है राजधानी के खासमखास बाजार करोल बाग के होटल अर्पित पैलेस में 12 फरवरी को तड़के भीषण आग गई। आग की चपेट में आने से 17 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई।

जैसा कि हमारे यहां रस्म अदायगी होती है, हादसे के बाद घटनास्थल पर मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल भी पहुंच गए। कुछ देर तक घटनास्थल पर रहने के बाद फोटो सेशन और टी. वी. बाईट देकर वहां से निकल गए। अगर इन्होंने ही समय रहते नियमों का उल्लंघन करके चल रह ेइन तमाम होटलों पर कार्रवाई कर ली होती तो करोलबाग जैसे गुलजार रहने वाले बाजार में मौत का मातम नहीं मनाया जाता। वहां की रोजमर्रा जिंदगी अपनी रμतार से चल रही होती। यहां अपने होटल में सोए लोग हमेशा के लिए मौत की गोद में सो नहीं जाते। हो सकता है कि हमारे युवा पाठकों को मंडी डबवाली जैसे स्वतंत्र भारत के सबसे भीषण और दुखदायी अग्निकांड की जानकारी न हो इसलिए थोड़ी सी सूचना अपडेट कर देता हूँ । उस दिन मंडी डबवाली के ग्रामीण इलाके की एक स्कूल में कार्यक्रम चल रहा था। शामियाने के नीचे बहुत बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे,उनके अभिभावक और तमाम दूसरे लोग बैठे थे। उनके वहां से निकलने का सिर्फ एक ही रास्ता छोड़ा गया था। कार्यक्रम के शुरू होने के बाद वहां पर तिल रखने की जगह भी नहीं बची थी। सारे माहौल में उत्साह भरा था। तब ही शामियाने में लगी बिजली के तारों में शार्ट सर्किट के बाद अचानक आग लग गई। आग ने चंद मिनटों में ही वहां पर मौजूद सैकड़ों लोगों को काल के मुंह में समेट दिया। कमोबेश इसी तरह के हालातों से दो-चार हुए थे नई दिल्ली के पाश इलाके में उपहार में बार्डर फिल्म देख रहे अभागे लोग। उपहार सिनेमा हॉल में आग लगने के बाद उसके भीतर धुआं उठने लगा। जब वे अभागे दर्शक वहां से निकलने की कोशिश कर ही रहे थे कि उन्होंने पाया कि सिनेमा घर के सारे दरवाजे बंद थे। जरा सोचिए कि उन पर तब क्या बीत रही होगी। वे अपने सामने मौत को नाचते देख रहे होंगे। मंडी डबवाली में डीएवी स्कूल में चल रहे सालाना आयोजन में 360 अभागे लोग, जिनमें स्कूली बच्चे अधिक थे, स्वाह हो गए थे। कुछ लोग तो यह भी दावा करते हैं कि मृतकों की तादाद साढ़े पांच सौ से भी अधिक थी। उधर उपहार में लगी भयंकर आग के चलते 59 जिंदगियां आग की तेज लपटों की भेंट चढ़ गईं थीं। मंडी डबवाली और उपहार त्रासदियों की तरह ही रोलबाग हादसे की जांच के भी औपचारिक आदेश दे दिए गए हैं। जाँच हो भी जाएगी और रिपोर्ट की फाइल आलमारियों की शोभा बढ़ाते रहेगी। कभी-कभी अपने देश की व्यवस्था पर गुस्सा आता है कि हमारे कर्णधार सिर्फ संवेदना व्यक्त करने या मुआवजा बांटने के अलावा भी कुछ करते हैं क्या? करोलबाग हादसे के शिकार लोगों के परिवार जनों के रोते-बिलखते अखबारों में फोटो देखकर मन उदास हो गया है। आखिर हम कब रोकेंगे इन हादसों को? लगता तो नहीं है कि कभी भी हम रोक पाएंगे। जरा पूछिए उनसे जिन्होंने मंडी डबवाली या उपहार जैसे हादसों में अपने किसी करीबी को खोया है। अब उपहार के नजदीक ही एक पार्क में हर साल 13 जून को उस हादसे में मारे गए लोगों की याद में कम से कम एक शोक सभा तो हो जाती है। उसमें हादसे के शिकार लोगों के कुछ परिजन भी आ जाते हैं। जरा सोचिए उस शोक सभा में आए लोगों के ऊपर अपने जिगर के टुकड़ों को याद करके क्या गुजरती होगी। अगर मंडी डबवाली या उपहार से ही हमने कुछ सीख लिया होता तो मुंबई में दो साल पहले कमला मिल कंपाउंड में लंडन टैक्सी बार में रात को भीषण आग में 15 जानें नहीं जात। पुलिस ने बार के मालिकों के खिलाफ आईपीसी की धारा 304 के तहत केस तो जरूर दर्ज कर लिया था। पर उसके बाद क्या हुआ किसे को नहीं पता। यही तो हमारे यहां होता आया है। ले-देकर मामला सलटा दिया जाता है क पुलिस-प्रेस-पॉलिटिशियन सभी को उनमें ही समाज का भला दिखता है, तो भगवान ही भला करे इस महान राष्ट्र का। जरा सोचिए कि कोई आदमी रेस्टोरेंट या बार में कुछ वक्त आनंद और मस्ती के लिए जाता है, पर वहां पर वो हादसे में दर्दनाक मौत का शिकार हो जाता है। यह ही तो हुआ था उपहार सिनेमा घर में फिल्म देखने गए लोगों के साथ भी। क्या इस देश में इंसान इसी तरह कुत्ते की मौत मरता ही रहेगा और, हम समाज के तथाकथित ठेकेदार मूक दर्शक ही बने रहें । कभी-कभी तो मुझे अपने सांसद होने पर गर्व नहीं ग्लानि की अनुभूति होती है । समझ में ही नहीं आता कि देश को संवेदनहीन बाबूगिरी से कब छुटकारा मिलेगा। इसके साथ ही, एक बात को अब मान लीजिए इन हादसों के लिए प्रशासन के साथ-साथ हमारा समाज भी जिम्मेदार है। हम सबको अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करनी ही होगी। मंडी डबवाली अग्निकांड के लिए वे तमाम लोग भी दोषी थे, जो वहां पर चल रहे कार्यक्रम को आयोजित कर रहे थे। मंडी डबवाली में लगे शामियाने में एकत्र लोगों के लिए बाहर निकलने का आखिरकार सिर्फ एक ही रास्ता क्यों छोड़ा गया था? क्या उन्हें मालूम नहीं था कि अगर कोई हादसा हुआ तो लोग निकलेंगे कैसे? सिर्फ एक ही रास्ता होगा तो फिर हादसे की हालत में धक्का-मुक्की तो होगी ही। मुझे याद है कि उपहार कांड के दौरान भी फायर ब्रिग्रेड की गाडियां भी वक्त पर इसलिए नहीं पहुंच पार्इं, क्योंकि उस वक्त उपहार जाने वाले तमाम रास्तों पर भारी जाम लगा हुआ था। करोलबाग के ही बीडनपुरा में कुछ समय पहले हुए एक अगिनकांड के वक्त भी फायर ब्रिगेड की गाड़ियां भी बड़ी मुश्किल से घटना स्थल पर पहुंच पाईं थीं। जाहिर है, वाहनों को घटना स्थल पर पहुंचने में ही खासा विलंब हो गया था और वक्त पर मदद न मिलने से बहुत सी जानें चली गईं। बहरहाल, अमेरिका या यूरोप का कोई देश होता तो इतनी मौतों के लिए सम्बंधित सरकारों और स्थानीय निकायों पर ही आपराधिक मुकदमा कायम हो गया होता और सभी जेल के अन्दर होते। करोड़ों का हर्जाना-जुर्माना अलग से होता। लेकिन, हमारे देश में सब बयान देकर ही बरी हो जाते हैं। मंडी डबवाली से लेकर उपहार कांड के बाद मीडिया में आग से निपटने के उपायों पर लंबे-लम्बे लेख छपे और खबरिया चैनलों पर गंभीर चचार्एं हुईं। विशेषज्ञों ने अपनी राय भी रखीं। पर सरकारी विभागों के चाल, चरित्र और चेहरे में, काम- काज के ढर्रे में, तो कोई फर्क़ नहीं नजर आया। किसी को कोई फर्क़ नहीं पड़ता सिवाय उन लोगों के, जिनकी दुनिया हमेशा के लिए वीरान हो जाती है। सरकारें नागरिकों से तगड़ा टैक्स लेती हैं। दिल्ली में एमसीडी और मुंबई में बीएमसी टैक्स से अरबों रुपये की आमदनी है। लेकिन, आम शहरी की जान बचाने की जिÞम्मेदारी लेने के लिए भी कोई तैयार क्या? यकीन मानिए कि हम करोलबाग हादसे को भी जल्दी ही भूल जाएंगे। ? अमेरिका या यूरोप का कोई देश होता तो इतनी मौतों के लिए सम्बंधित सरकारों और स्थानीय निकायों पर ही आपराधिक मुकदमा कायम हो गया होता और सभी जेल के अन्दर होते। करोड़ों का हर्जाना-जुर्माना अलग से होता। लेकिन, हमारे देश में सब बयान देकर ही बरी हो जाते हैं। मंडी डबवाली से लेकर उपहार कांड के बाद मीडिया में आग से निपटने के उपायों पर लंबे-लम्बे लेख छपे और खबरिया चैनलों पर गंभीर चचार्एं हुईं।

आर के सिन्हा