माघ स्नान
हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ वर्ष का ग्यारहवाँ महीना है| माघ का यह महीना स्नान, दान के लिए बहुत शुभ माना जाता है|
शास्त्रों में भी माघ के महीने को स्नान, दान और उपवास के लिए बहुत विशेष माना जाता है| इस महीने में जो व्यक्ति भक्तिभाव से किसी भी पवित्र नदी में स्नान करता है वह तमाम पापों से मुक्त हो जाता है|
धर्मराज युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध के दौरान मारे गए अपने रिश्तेदारों को सदगति दिलाने हेतु मार्कण्डेय ऋषि के कहने पर कल्पवास किया था|
गौतमऋषि द्वारा शापित इंद्रदेव को भी माघ स्नान के कारण श्राप से मुक्ति मिली थी| माघ के धार्मिक अनुष्ठान के फलस्वरूप प्रतिष्ठानपुरी के नरेश पुरुरवा को अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी|
माघ मास में जो पवित्र नदियों में स्नान करता है उसे एक विशेष प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है ,जिससे उसका शरीर निरोगी और आध्यात्मिक शक्ति से संपन्न हो जाता है|
कहा जाता है कि सभी पापों से मुक्ति और भगवान जगदीश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान कर सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य को अर्घ्य अवश्य प्रदान करना चाहिए |
इस महीने में यदि कोई व्यक्ति सूर्य की मानसिक आराधना भी करता है तो वह समस्त व्याधियों से रहित होकर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करता है | व्यक्ति को अपने कल्याण के लिए सूर्यदेव की पूजा अवश्य करनी चाहिए |
माघ स्नान से सदाचार, सन्तानवृद्धि, सत्सङ्ग, सत्य आचरण उदारभाव आदि का प्राक्टय होता है| व्यक्ति उत्तम गुणों से सम्पन्न हो जाता है| उसकी दरिद्रता और पाप दूर हो जाते हैं|
माघ मास के प्रातः स्नान से वृत्तियाँ निर्मल होती हैं तथा विचार ऊँचे होते हैं| इसलिए माघ मास का स्नान स्वयं एवं बच्चों को यत्नपूर्वक करना एवं कराना चाहिए| माघ मास के प्रातः स्नान से निर्मल विद्या व कीर्ति मिलती है|
पद्म पुराण में गुरु वसिष्ठ जी कहते हैं कि वैशाख मास में जलदान, कार्तिक मास में तपस्या, पूजा और माघ मास में जप, होम और दान उत्तम माना गया है|