हास्य-व्यंग

गोलगप्पे

मानव निर्मित एक चटपटी चीज है जिसके स्मरण मात्र से ही मुँह में पानी और आँखों में मिचमिचाहट आ जाती हो , जीभ मुँह के अंदर कुचीपुड़ी नृत्य करने लगती हो , पूरे चेहरे पर ललचाये से गीले गीले मनोभाव प्रकट हो जाते हो …, ऐसे महान गोलगप्पो की कथा सुनने मात्र से ही इंसान के कई पाप नष्ट हो जाते है ..!

शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा हो जिसने इस गोलमटोल खोखली और कुरकुरी चीज क़ा स्वाद ना लिया हो ! इसका रूप , आकार , मनमोहक खुशबू और पास में रखा लाल कपड़े से लिपटा हुआ काला मटका बरबस ही हमें खींच लेते है ! गोलगप्पो से हमारा पेट भर सकता है पर मन , कदापि नहीं ..!

गोलगप्पे को प्यार से पतासी , पानीपूरी , गुपचुप और पुचका भी पुकारा जाता है ! गोलगप्पे जन्म से ही संयुक्त परिवार में इकट्ठे ही रहते है ! जब मैदा और सूजी जैसे दो बड़े पारंपरिक घराने आपस में मिलते है तब जाकर ऐसी अद्भुत रचना की उत्पत्ति होती है !

गोलगप्पे अपना संपूर्ण जीवन पॉलीथिन की बड़ी बड़ी थैलियों में या कांच के बॉक्स में गुजारते है ! जब इनका समय आता है तब ये कैरी या इमली से बनें खट्टे मीठे पानी से भरे मटके में डुबकी लगाकर चटनी और आलू के साथ सीधे हमारे मुँह में चले जाते है ..! गोलगप्पे को मुँह में रखते ही ऐसा महसूस होता है जैसे हमने संपूर्ण ब्रह्मांड को ही अपने मुँह में रख लिया हो !

ये प्रायः गली में और चौराहे पर लगे ठेलों पर ज्यादा पाये जाते है ! ठेले वाला छोटे छोटे दोने वितरित करके एक साथ कई लोगों को गिनती से गोलगप्पे खिलाता है..! गोलगप्पे वाले की खिलाने की स्पीड इतनी ज्यादा होती है कि एक गोलगप्पा खाने वाले के हाथ में , दूसरा दोने में , तीसरा उसके मुँह में और चौथा खिलाने वाले के हाथ में ! आलू मसाले के साथ चटनी मीठी खानी है या खट्टी , ये बताने के लिए बेचारा ग्राहक उस स्पीड की वजह से केवल फूले हुए मुँह और आँखों से इशारा करके ही उसे बता पाता है !

आप ध्यान से देखना , ठेले वाले क़ा अंगूठे क़ा नाखून आपको जरा सा बढ़ा हुआ मिलेगा , ताकि वो उसमें सही तरीके से छेद कर सके नहीं तो गोलगप्पे के साथ दुर्घटना भी हो सकती है ! एक हाथ से छेद करके , उसी हाथ से मसाला और झोल भरकर गिनती याद रखते हुए क्रम से प्रत्येक के दोने में रखना कोई मामूली बात नहीं है ..! ऐसा क्रम कई सालों की प्रेक्टिस से ही सम्भव है …!

गोलगप्पा वैसे तो महिला पुरुष और बच्चे , तीनों क़ा मनपसंद होता है पर महिलाओं क़ा स्नेह इस पर ज्यादा रहता है ! जब पांच या छः महिलाए ठेले को घेर कर खड़ी हो जाती है तो एक कुशल ठेलेवाला ही उन देवियों से पार पा सकता है ! हर गोलगप्पे वाला महिला प्रजाति क़ा मुँहबोला भैया होता है ! भैया बोले जाने के पीछे भी कई कारण है ! कोई तो भैया भैया बोलकर उसको गिनती भुला देती है , कोई उससे ज्यादा पपड़ी ले लेती है तो कोई मोटा गोलगप्पा खाने के लिए उसे भैया बुलाती है ! जो गोल गप्पे वाला इस भैया रूपी छलावे में ना आकर केवल अपने काम में ध्यान देता है वो ही शाम को कुछ कमा कर ले जा सकता है !

मेरे द्वारा किए गए सर्वे में मुझे मालूम पड़ा कि एक महिला अपने मूड में हो तो वो एक बार में 60-70 गोलगप्पे हजम कर सकती है ! वहीं पुरुष 10-15 और बच्चे 15-20 तक ..! शादियों में हम जेंट्स तो गोल गप्पो वाली स्टॉल की तरफ झाँक भी नहीं सकते ! वहाँ महिलायें औऱ लड़कियां मधुमक्खी की भांति मंडराती रहती है ..! उनके बीच में किसी जेंट्स का घुसना औऱ गोलगप्पे खाना दुनियां के दुष्कर कार्यो में से एक काम माना जाता है …!

गोल गप्पे आप घऱ पर भी बना कर सकते है ,पर मैं गारंटी के साथ कह सकता हूँ जो मजा ठेले पर खाने में आएगा वो घऱ पर कभी नहीं आ सकता ,क्योंकि एक तो घऱ पर ज्यादा सफाई रहती है और घऱ पर खाने की वो गति नहीं बन पाती जो आपको ठेले पर मिलती है ..! गोलगप्पो का आधा स्वाद तो चटनियों के उन कटोरों में ही छुपा रहता है , जो हफ्तों तक नहीं बदले जाते ! अगर गोलगप्पे बाजार में खाने हो तो अपनी संजीदगी , शरम औऱ स्वाभिमान घर पर ही छोड़कर आना पड़ता है ! बेचारे बड़े बड़े पूंजीपति या नेता लोग तो चाहकर भी ठेलों पर गोलगप्पे नहीं खा सकते ! हे भगवान , किसी को इतनी इज्जत औऱ दौलत भी ना बख्शा कर , जो इन ठेलों पर खड़े होने में भी शर्म महसूस करे..!

आपको बता दूँ….ठेले पर गोलगप्पे खाने के बाद सूखी पपड़ी खाना और एकस्ट्रा झोल पीना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है ! एक भरे पूरे साबुत गोलगप्पे को मुँह में रखना बड़ा ही चुनौती क़ा काम है और इस काम में हम भारतीय लोगों क़ा कोई मुकाबला नहीं है ! मैंने अध्ययन किया है कि एक डेंटिस्ट के कहने पर भी आप उतना मुँह नहीं खोल पाते हो , जितना आप सहजता से गोलगप्पे के लिए खोल लेते हो ! बड़े से बड़े साइज का गोलगप्पा खाने से जो आत्मसंतुष्टि मिलती है वो किसी अन्य कार्य करने से भी नहीं मिलती !

तो इंतजार किस बात का… दौड़ पड़िये अपने नजदीकी चौराहे पर , जहाँ खड़े है आपके मनपसंद गोलगप्पे वाले.. अपना अपना ठेला लगाकर ! आप चलो… मैं भी आता हूँ आपके पीछे पीछे …

सौजन्य: श्री संजय गुप्त, Whatsapp Group.