निरन्तर गतिशीला त्रैलोक्यव्यापिनी गंगा
भारतीय सभ्यता और संस्कृति को सर्वलोकोपकारिणी बनाने में मानवहृदय को मंगलमयी प्रेरणा देने वाली गंगा का भारतीय सभ्यता संस्कृत्िा के उत्कर्ष में न केवल अत्यंत विशिष्ट महत्त्व है, बल्कि यहविश्व की सर्वश्रेष्ठ नदियों में अपने अनेक विशिष्ट गुणों के कारणसर्वप्रथम स्थान रखती है। भारतीयों के लिए तो गंगा घरती पर बहकर भी आकाश वासीदेवताओं की नदी है, और इस लोक की सुख-समृद्धियों की विधानी होकर भी परलोकका सम्पूर्ण लेखा-जोखा संवारने वाली है। कृषिकर्म सदा से मानव जाति की संस्कृति कामूलाधार रहा है और कृषिकर्म का आधार रही हैं नदियाँ। इन नदियों में भारत में गंगा एकऐसी नदी रही है, जिसकी घाटी में सर्वप्रथम कृषिकर्म का श्रीगणेश किया गया था। गंगाहमारे देश में सबसे अधिक अन्न देने वाली अन्नपूर्णा है। यही कारण है कि कृषि प्रधानभारतभूमि में गंगा एक देवी के रूप में मानी और पूजी जाती है।
हरिश्चंद्र शर्मा
वेद, उपनिषद, पुराण आदि भारतीय ग्रन्थों में अन्यअनेक नदियों के साथ ही गंगा के देवीरूप की अनेककथाएँ, चर्चाएँ व माहात्म्य अंकित हैं। गंगा कानामकरण भी सार्थक है। इस शब्द का अर्थ है निरन्तरगतिशील जलप्रवाह। गमनार्थक गम्धातु सेआओणषादिक गन्प्रत्यय करने पर गंगा शब्द कीनिष्पत्ति होती है, फिर भी इसके अनेक अर्थ बताए गएहैं। कुछ विद्यान्गम्यते ब्रह्मपदमनया- इस अकार करविग्रहत्रह्म पद प्राप्त कराने के कारण इनका गंगा नामबतलाते हैं। किन्तु गतिशीलता का अर्थ अधिकयुक्तियुक्त है। सदा तीव्र गति से प्रवाहित होने वाली उप्तजलधारा का नाम गंगा उचित ही है जिसके प्रवाह केसामने ब्रह्मा को अपना कमण्डलु तथा शंकर को अपनीजटा फैलानी पड़ी। त्रैलोक्य भर में किसी अन्य में इनकेप्रवाह को अवरुद्ध करने की शक्ति नहीं थी। किन्तु इसगंगा शब्द से कानों में गूंजने वाली संगीतात्मक श्रुतिमधुर ध्वनि से प्राप्त होने वाली परमानन्द के साथ- साथहृदय में होने वाली भक्ति के संचार से अनेक कवियोंने प्रेरित होकर भग्वदमहिमा व गंगा महिमा का अत्यंतसुंदर वर्णन किया है। ऋग्वेद में गंगा का उल्लेख केवलदो बार ऋग्वेद 10/75/5 और 6/45/31 में आया है,किन्तु वैदिक साहित्य के दूसरे अंगों में गंगा के सम्बन्धमें विस्तृत वर्णन अंकित है। शतपथ ब्राह्मण के13/5/4/11, जैमिनीय ब्राह्मण के 3/183 औरतैत्तिरीय आरण्यक के 2/10 में गंगा का उल्लेख है।महाकाव्यों में भी गंगा महात्म्य की विस्तृत चर्चा हुई है।आदि कवि वाल्मीकि रामायण में गंगा को हिमवान कीपुत्री मानते हैं। उनकी माता का नाम मेनका है, जोपर्वतराज सुमेरु की कन्या थी। इस प्रकार भगवानशंकर की अर्द्धांगिनी उमा गंगा की सहोदरा कनिष्ठभगिनी थीं। हिमवान से गंगा को देवताओं ने माँग लियाथा। हिमवान से गंगा को प्राप्त कर देवता धन्य हो गएथे और उसे उन्होंने तीनों लोकों में प्रतिष्ठित किया था।कथा के अनुसार देवताओं ने शिव से व्याह करने केलिए हिमवान से गंगा की याचना की थी। जब गंगामेनका के घर से बिना पूछे ही देवताओं के साथ चलीगयीं तो मेनका ने उन्हें अपने घर में न देख जड़ अर्थात्जलमयी हो जाने का शाप दे दिया। तभी से गंगा जलरूप ब्रह्मा के कमण्डलु में रहने लगीं। राजा सगर केपुत्रों के कपिल मुनि के शाप से भस्म हो जाने पर उनकेउद्धार के लिए गंगा ब्रह्मा के कमण्डलु से बाहर निकलकर घरती तलपर अवतीर्ण हुई। महाभारत वन पर्व,अध्याय 12, 42, 47, 83-88, 90, 93, 95, 99,107-109 आदि में गंगा से सम्बन्धित विवरण अंकितहैं। महाभारत की कथा के अनुसार गंगा कुरुराजशान्तनु की पत्नी और भीष्म की माता हैं। भीष्म कादूसरा नाम गांगेय भी है। गंगा का सम्बन्ध कार्तिकेय केमातृत्व से भी है। पुराणों में गंगा की पावन कथा एवंमाहात्म्य का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है।ब्रह्मपुराण एवं वृहन्नारदीय पुराण में तो अनेक अध्यायोंमें गंगा की ही चर्चा की गयी है। गंगा के सम्बन्ध में ब्रह्मपुराण 8/71, 72, 73, 74, 76, 78, 90, 104,107, 116, 172, 17, 174, 175 अध्याय,पद्यपुराण (स्वर्ग खंड 16, उ०खं० 23, विष्णुपुराण8/4, शिव पुराण ज्ञान संहिता 53, 54 अध्याय,मत्स्यपुराण अध्याय 105, श्रीमद्भागवत 16, 17, देवीभागवत पुराण, वृहन्नारदीय पुराण 61, 65, मार्केण्डेयपुराण 56, अग्नि पुराण 70,71, 72, ब्रह्मवेवर्त पुराणप्रकृति खण्ड 6, 10, 112, गणेश खण्ड रेवा खण्ड34, 35, लिंग पुराण पूर्व भाग 52, वराह पुराण 171,भविष्य पुराण, स्कन्द पुराण (देव काण्ड, दक्ष खण्ड,21- 25, षष्ठ सौर संहिता 6-20, अम्बिका खण्ड196- 198, काशी खण्ड 73, नागर खण्ड, प्रंभासखण्ड 116, 186, ब्रह्माण्ड पुराण 46 तथा वामनपुराण 34, वृहद धर्म पुराण में विस्तृत रूप से अंकितहैं। गंगा माहात्म्य का वर्णन सभी पुराणों में प्राय: समानहैं। सगर के वंशज राजा भगीरथ द्वारा गंगा भागीरथी केधरती पर अवतरण होने की कथा तो अति प्रसिद्ध है।इसके साथ ही अन्य अनेक पौराणिक कथाएँ भी गंगाके साथ जुड़ी हुई हैं। पद्म पुराण 6/267/47 में गंगाको मन्दाकिनी के रूप में स्वर्ग में, गंगा के रूप में पृथ्वीपर और भोगवती के रूप में पाताल में प्रवाहित होते हुएवर्णन किया गया है। विष्णु 2/8/109, पद्म पुराण5/25/188 आदि पुराणों में गंगा को विष्णु के बायें पैरके अँगूठे के नख से प्रवाहित माना है। कूर्म पुराण1/46/31 के अनुसार शिव ने अपनी जटा से गंगा कोसात धाराओं में परिवर्तित कर दिया, जिनमें तीन -नलिनी, दिनी एवं पावनी पूर्व की ओर, तीन -सीता,चक्षुस एवं सिन्धु पश्चिम की ओर प्रवाहित हुई औरसातवीं धारा भागीरथी हुई। मत्स्य पुराण 121/38-41,ब्रह्माण्ड पुराण 2/18/39-41 एवं 1/3/65-66. कूर्मपुराण 1/46/30-31 एवं वराह पुराण अध्याय 82 केअनुसार गंगा सर्वप्रथम सीता, अलकनंदा, सुचक्ष एवंभद्रा नामक चार विभिन्न धाराओं में बहती है।अलकनंदा दक्षिण की ओर बहती है, भारतवर्ष की ओरआती है और सप्तमुखों में होकर समुद्र में गिरती है।ब्रह्माण्ड पुराण 7368-69 में गंगा को विष्णु के पाँव सेएवं शिव के जटाजूट में अवस्थित माना गया है। एकदूसरे पौराणिक आख्यान के अनुसार गंगा हिमालय औरमैना की पुत्री तथा उमा की भगिनी थीं। पौराणिक ग्रन्थोंके अनुसार विवद्गंगा, आकाशगंगा अथवा स्वर्गगंगाविष्णु के अँगूठे से निकली हैं, जिसका पृथ्वी परअवतरण भगीरथ के स्तवन से कपिल मुनि द्वाराभस्मीकृत राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियोंको पवित्र करने के लिए हुआ। भगीरथ के साथ इसीसंयोग के कारण गंगा का दूसरा नाम भागीरथी पड़ा।कथा के अनुसार स्वर्ग से उतरने के कारण गंगा अत्यन्तकुपित हो उठी थीं और उसके कोप के कारण पृथ्वी परउसकी धारा पड़ते ही उनके बहकर नष्ट हो जाने के भयसे शिव ने अपनी जटा में उसे समेट लिया, जिससेउनकी जटाओं में उलझ जाने के कारण धारा पृथ्वी परसीधी नहीं पड़ी और गंगा की गति मन्द हो गई। इसीकारणशिव का एक नाम गंगाधर भी पड़ा। गंगा काअवतरण तपस्वी जह्नु के यज्ञ के लिए घातक हुआ,जिससे क्रुद्ध होकर उस तापस ने गंगा को पी डाला औरप्रार्थना के बाद उसने कान से गंगा की धारा निकाल दी,जिससे वह जाह्नवी कहलाई हैं। शिव की जटा से गंगाके पृथ्वी पर अवतरण की यह घटना ज्येष्ठ मास केशुक्ल पक्ष की दशमी की तिथि को हुई थी। पृथ्वी परगंगावतरण के सम्बन्ध में विद्वानों व पुराणों मेंमतभिन्नता है। कुछ पुराणों के अनुसार वैशाख शुक्लतृतीया अर्थात अक्षय तृतीया को गंगा धरती पर अवतीर्णहुई और कुछ उसे कात्तिकी प्रणिमाजाता अर्थात कार्तिककी पूर्णिमा को अवतीर्ण मानते हैं। किन्तु लोक एवंपौराणिक मान्यतानुसार जिस दिन गंगा की उत्पत्ति हुई,वह बैशाख शुक्ल सप्तमी का दिन था, जिसे गंगा जयंतीके नाम से जाना जाता है और जिस दिन गंगा पृथ्वी परअवतरित हुईं, वह ज्येष्ठ शुक्ल दशमी का दिन गंगादशहरा के नाम से जाना जाता है। ज्येष्ठ शुक्ल दशमीअर्थात गंगा दशहरा ही गंगा के अवतीर्ण होने की पुण्यतिथि है। इस सम्बन्ध में प्रख्यात श्लोक है-दशमी शुकलपक्षे त ज्येष्ठ मासि कुजेडहनि ।अवतीर्णा यत: स्वर्गात्हस्तक्षे च सरिद्वरा ।।अर्थात-ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि कोमंगलवार एवं हस्त नक्षत्र में गंगा स्वर्ग से धरती परअवतीर्ण हुई।