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खेती के लिए किसानों को ऋण लेना ही न पड़े ऐसी स्थिति बनाइये

देश में राजनीतिक दलों ने सत्ता पाने का एक शॉर्टकट रास्ता खोज लिया है। जब भी चुनाव आये किसानों को उनके ऋण माफी की घोषणा करक उनके वोट लेकर चुनाव जीत जाओ। पिछले कुछ वर्षों से यही देखने को मिल रहा है। हाल ही में सम्पन्न हुये पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हिन्दी भाषी क्षेत्र के तीन महत्वपूर्ण राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार बनाने में कामयाब रही है। कांग्रेस की कामयाबी का मुख्य कारण कांग्रेस द्वारा किसानों के कर्ज माफ करने की घोषणा को माना जा रहा है। देश में किसान आये दिन आत्महत्या कर अपनी जान गंवा रहा है जिसका मुख्य कारण उनका कर्जदार होना है। देश के सभी क्षेत्रों के किसान आज कर्ज के बोझ से दबे हुये हैं। किसानों को उनकी उपज का सही दाम नहीं मिलना, प्राकृतिक कारणों से किसानों की फसल खराब हो जाना, खराब हुयी फसल का बीमा कम्पनियों द्वारा समुचित आवजा नहीं दिया जाना, किसानों को मिलने वाला बीज, खाद का नकली होने कुछ ऐसे कारण रहे हैं जिन्होंने किसानों को लगातार कर्जदार बनाये रखा है।
देश में राजनीतिक दलों ने सत्ता पाने का एक शॉर्टकट रास्ता खोज लिया है। जब भी चुनाव आये किसानों को उनके ऋण माफी की घोषणा करक उनके वोट लेकर चुनाव जीत जाओ। पिछले कुछ वर्षों से यही देखने को मिल रहा है। 2014 में भाजपा ने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा कर केन्द्र की सत्ता हासिल की थी तो कांग्रेस ने पंजाब व कर्नाटक का चुनाव भी कर्ज माफी के नाम पर ही जीता था। सरकार बनने पर कुछ किसानों का थोड़ा बहुत ऋण माफ कर उनको उनके पूर्ववर्ती हाल पर छोड़ दिया जाता हैं। धीरे-धीरे किसान पुन: बैंकों से ऋण लेकर ऋणी हो कर पूर्ववत स्थिति में आ जाता है। ऐसे में सरकार किसानों की बार-बार कर्ज माफ करने के स्थान पर ऐसा कोई अन्य उपाय क्यों नहीं करती जिससे किसानों को बार-बार कर्जदार ना होना पड़े। देश के कई प्रदेशों में किसान आन्दोलन की सुगबुगाहट इस बात का द्योतक है कि देश के किसानों में अपनी लगातार बिगड़ती जा रही आर्थिक दशा को लेकर अन्दर ही अन्दर भयंकर आक्रोश व्याप्त हो रहा है। हाल ही में तीन राज्यों में सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी के लोन माफी के वादे के उपरान्त गत एक सप्ताह में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद कर्ज से परेशान राजसंद, झालावाड, श्रीगंगानगर, जोधपुर में चार किसानों ने आत्महत्या कर ली है। मध्य प्रदेश में दो किसानों ने आत्महत्या कर सरकार की ढुलमुल ऋण माफी नीति के मुंह पर करारा तमाचा मारा है। सरकारें घोषणा तो फटाफट कर देती हैं मगर उन पर अमल करते समय कानूनी-नियमों का ऐसा मकड़जाल बुना जाता है जिसमें अनपढ़ किसान फंस कर रह जाता है। कांग्रेस के गठबंधन से कर्नाटक में चल रही सरकार ने भी किसानों के ऋण माफी के बड़े- बड़े वादे किये थे मगर वहां सरकार बनने के बाद अब तक 250 किसानों ने कर्ज से परेशान होकर पिछले 6 महीने में आत्महत्या की है। हालांकि वहां के कृषि विभाग के सूत्रों का कहना है कि ये बता पाना मुश्किल है कि ये आत्महत्याएं कर्ज के कारण हुई हैं या किसी और कारण से, लेकिन असलियत तो ये है कि कांग्रेस और जेडी (एस) की सरकार किसानों की आत्महत्या रोक पाने में असमर्थ है। एक समय पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान, जय किसान का नारा दिया था। शास्त्री जी इस नारे के जरिये समाज में वह एक संदेश पहुंचाना चाहते थे कि किसान और जवान देश की दशा और दिशा तय करते हैं, अगर ये नहीं होंगे तो देश की दुर्दशा हो जाएगी। जहां जवान देश की रक्षा करता है, वहीं किसान खेती के जरिये देश को अनाज देता है। अगर किसान नहीं होगा तो देश में अन्न के टोटे पड़ जायेंगे। आज हम जब जय किसान का नारा सुनते हैं तो कुछ अजीब-सा लगता है। आज किसान की जय नहीं बल्कि पराजय हो रही है। किसान भूखा और कमजोर हो रहा है। फसल बर्बाद होने की वजह से किसान आत्महत्या कर रहे हैं। कृषि और किसान भारतीय परम्परा के वाहक हैं। जब परम्परा मरती है तो देश मरता है। किसानों की खुशहाली से ही देश व सम्पूर्ण मानवता खुशहाल होगी। किसान खुशहाल नहीं होंगे तो देश को दु:खी होने से कोई नहीं रोक पायेगा। हमारे देश में किसानों की आत्महत्या एक राष्ट्रीय समस्या का रूप धारण कर चुकी है। आये दिन देश के किसी ना किसी हिस्से से किसानों के आत्महत्या करने की खबरें मिलती रहती हैं। देश की प्रगति एवं विकास में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद भी किसानों को जिन्दगी से निराश होकर ऐसे कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। यह निश्चित रूप से गंभीर चिंता का विषय है। देश में किसानों द्वारा आत्महत्या करने के मामलों में अप्रत्याशित तौर पर काफी वृद्धि हुई है। भारतीय कृषि बहुत हद तक मानसून पर निर्भर है तथा मानसून की असफलता के कारण नकदी फसलें नष्ट होना किसानों द्वारा की गई आत्महत्याओं का मुख्य कारण माना जाता रहा है। मानसून की विफलता, सूखा, कीमतों में वृद्धि, ऋण का अत्यधिक बोझ आदि परिस्तिथियां समस्याओं के एक चक्र की शुरूआत करती हैं। बैंकों, महाजनों, बिचौलियों आदि के चक्र में फंसकर भारत के विभिन्न हिस्सों के किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। भारत में किसान आत्महत्या 1990 के बाद पैदा हुई स्थिति है जिसमें प्रतिवर्ष दस हजार से अधिक किसानों के द्वारा आत्महत्या की रपटें दर्ज की गई हैं। चाहे सत्ता में कोई भी दल रहे मगर किसानों के लिए कोई भी दल गंभीर नहीं है। 2022 तक किसान की आमदनी को दो गुना करने के अपने सपने को साझा करते हैं। इस पर किसानों का कहना है कि ये नेता सिर्फ घड़ियाली आंसू बहाते हैं। ना पिछली यूपीए सरकार गंभीर थी और ना ही वर्तमान मोदी सरकार। यानी किसान अब सच्चाई समझने लगे हैं और शायद बड़े सपने देखने से कतराने भी लगे हैं। किसानों की आत्महत्या किसी भी समाज के लिए एक बेहद शर्मनाक स्थिति है। आखिर वो कौन सी परिस्थितियां हो सकती हैं जिसकी वजह से किसान जो सबके लिए अनाज उपजाता है वो आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता है। भारत में अभी हाल के दिनों में किसानों के आत्महत्या करने के आंकड़ों में वृद्धि दर्ज की गयी है जो वाकई चिंता का विषय है और इस ओर अगर वक्त रहते ध्यान नहीं दिया गया तो ये हालात और भी बिगड़ सकते हैं। सरकार को किसानों की आत्महत्या जैसे ज्वलंत मुद्दे को समझने और उन कारणों, जिनकी वजह से किसान इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं, का समाधान सोचने की आवश्यकता है। भारत जैसे एक कृषि प्रधान देश में किसानों की आत्महत्या बेहद चिंताजनक स्थिति है। कृषि क्षेत्र में निरंतर मौत का तांडव दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों का नतीजा है। दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों के चलते कृषि धीरे-धीरे घाटे का सौदा बन गई है, जिसके कारण किसान कर्ज के दुष्चक्र में फंस गए हैं। पिछले एक दशक में कृषि ऋणग्रस्तता में 22 गुना बढ़ोतरी हुई है। अत: सरकार को किसानों के लिये प्रभावी नीतियों का निर्माण करना होगा। सबसे बढ़कर इन नीतियों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करना होगा। किसानों की स्थिति बेहतर बनाने और उन्हें आत्महत्या करने से रोका नहीं गया तो यह स्थिति और भी भयावह रूप धारण कर सकती है। उनके लिए फसल बीमा, फसलों का उच्च समर्थन मूल्य एवं आसान ऋण की उपलब्धता सरकार को सुनिश्चित करनी होगी तभी किसानों की स्थिति सुधरेगी और उन्हें आत्महत्या करने से रोका जा सकेगा। किसानों की बेहतरी के लिए सरकारों ने अभी तक कई समितियां बनाईं। इन समितियों ने अच्छी सिफारिशें भी प्रस्तावित कीं, फिर भी किसानों की हालात में कोई सुधार नहीं आया है। जमीनी स्तर पर आज किसानों की हालत बेहद खराब है। उन्हें तमाम परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। किसानों की खुदकुशी रोकने के लिये यदि सरकार वाकई संजीदा है, तो वह जल्द से जल्द एक ऐसी योजना बनाए जिसमें किसानों के हितों का खास खयाल रखा जाए। किसानों के सामने ऐसी नौबत ही न आए कि वे खुदकुशी की सोचें। आज देश में किसानों की बेहतरी के लिये उनके ऋण को माफ करने की बजाय ऐसी योजना बनाकर उनको राहत प्रदान की जाये जिससे उनको खेती के लिये ऋण लेने की जरूरत ही ना पड़े। किसानों को उनकी उपज की लागत का वास्तविक मूल्य मिलने लगे तो उनकी अधिकांश समस्यायें ही समाप्त की जा सकती हैं। देश का किसान अपनी फसल उपजाने के लिये मेहनत करने में कोई कमी नहीं छोड़ता है मगर उसके उपरान्त भी उसकी माली हालत कभी सुधर नहीं पाती है। कर्ज से परेशान होकर किसानों का आत्महत्या करना देश, प्रदेश की सरकारों पर कलंक है। जिस देश में किसान आत्महत्या करने को मजबूर होते हों वहां की सरकारों को शासन करने का हक नहीं होना चाहिये। लेकिन किसानों की आत्महत्या की घटनाओं से आंखें मूंदे बैठी सरकारों की सेहत पर कोई असर नहीं होता है। देश की सरकार ऐसा कोई समुचित उपाय कर पाने में नाकाम रही है जिससे किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं की घटनाओं को रोका जा सके।

रमेश सर्राफ धमोरा