करतारपुर पर खुशी, और चिंताएं
भारत सरकार के लिए मुश्किल भी है कि वह सिखों के इस प्रमुख गुरुद्वारे के दर्शन में बाधा नहीं बन सकती। इसके पीछे भारतीय जनता पार्टी की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दबाव है। संघ को लगता है कि सकारात्मक कदम उठाकर 1984 के दंगों में कांग्रेसी चोट से आहत सिखों का दिल जीता जा सकता है। ऐसे में जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव सिर पर खड़े हैं, दिल जीतने की यह कवायद बड़ी चुनावी कामयाबी की वजह भी बन सकती है।
लाखों-करो़ड़ों सिखों की आस्था का केंद्र करतारपुर सियासत की सरगरमियों की वजह बना है। पाकिस्तान चाहता है कि भारत के सिख सीधे आएं और ऐतिहासिक गुरुद्वारे के दर्शन करें। भारत का रुख सकारात्मक है, रास्ते की रुकावटें हटना शुरू भी हो गई हैं। गुरुद्वारे के लिए गलियारा बनने लगा है। लेकिन, क्या सब.कुछ इतना अच्छा और आसान है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के तेवर बताते हैं कि कहीं कुछ डर है। हम कहीं धार्मिक पहल के बहाने रक्षा मोर्चे पर मात देने की साजिश से तो रूबरू नहीं होने जा रहे हैं। उल्लास के माहौल में चिंताओं के भी रंग हैं।
करतारपुर कॉरिडोर बनाने की घोषणा भारत और पाकिस्तान दोनों ने की है। ये कॉरिडोर पाकिस्तान के करतारपुर और भारत के गुरदासपुर के मान गांव को जोड़ेगा। सिखों के पहले गुरु गुरुनानक देव की कर्मस्थली है करतारपुर, यहीं नानक देव ने अंतिम सांसें ली थीं। माना जाता है कि जिस स्थान पर गुरु नानक देव की मृत्यु हुई थी, गुरुद्वारा उसी स्थान पर है। दूर से ही दिख जाने वाले इस गुरुद्वारे का निर्माण 1920-29 के बीच महाराज पटियाला महाराज सरदार भूपिंदर सिंह ने कराया, खर्च हुए एक लाख 35 हजार छह सौ रुपये। वर्ष 1995 में पाकिस्तान सरकार ने इसके कुछ हिस्सों का पुनर्निर्माण कराया।
भारतीय सीमा से महज तीन किलोमीटर दूर स्थित इस गुरुद्वारे को टेलीस्कोप से देखने की व्यवस्था भारत ने कर रखी है। बहरहाल, प्रस्तावित कॉरिडोर का मकसद सिख श्रद्धालुओं के लिए गुरुनानक देव की पवित्र धरती तक पहुंच और आवाजाही आसान बनाना है। पाकिस्तान की घोषणा है कि कॉरिडोर बनने के बाद श्रद्धालु बिना वीजा गुरुद्वारे के दर्शन कर सकेंगे। भारत और पाकिस्तान, दोनों की तरफ से कॉरिडोर के लिए समारोहपूर्वक प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। करतारपुर गुरुद्वारे पर भारतीय सिख जाएं और अरदास कर सकें, इसके लिए पहल अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने की थी। 1998 में यह मसला पाकिस्तान सरकार के समक्ष उठा, लेकिन परमाणु परीक्षण के बाद पैदा परिस्थितियों की वजह से अधर में लटक गया। साल 2000 में पाकिस्तान ने भारत से आने वाले सिख श्रद्धालुओं को बॉर्डर पर एक पुल बनाकर वीजा फ्री एंट्री देने का फैसला किया था। साल 2017 में भारत की संसदीस समिति ने कहा कि आपसी संबंध इतने बिगड़ चुके हैं कि किसी भी तरह का कॉरीडोर संभव नहीं है। और
मामला वहीं थम गया। सिखों को लगता है कि अब उनके आराध्य के परम पवित्र गुरुद्वारे के आसानी से दर्शन की बेला आ गई है। लेकिन सब-कुछ इतना सीधा और सरल नहीं। पाकिस्तान की सुस्ती से निश्चिंत भारत की चिंताएं उसकी व्यग्रता ने बढ़ाई हैं। सरकार को डर है कि लंबे अरसे तक आतंकवाद की तपिश झेल चुके पंजाब में पाकिस्तान कहीं फिर आग न लगा दे। इस खौफ का अंदेशा भारत के सधे कदमों से लगता है। भारत सरकार ने करतारपुर कॉरिडोर के शिलान्यास समारोह में अपने दो मंत्रियों हरसिमरत कौर बादल और हरदीप पुरी को भेजा लेकिन पूरी निगरानी भी जारी रखी। अंतर्राष्ट्रीय पटल पर नकारात्मक संदेश न जाने देने के लिए प्रतिनिधित्व का निर्णय हुआ। सरकार खालिस्तान सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) समर्थकों की 2019 में गुरुनानक की 550वीं जयंती के मौके पर पाकिस्तान में होने वाले सम्मेलन की योजना पर भी करीबी नजर बनाए हुए है। सम्मेलन में सदस्य अलग खालिस्तान
बनाने की मांग करेंगे। सिख तीर्थयात्रियों को पाकिस्तान जिस उदारता के साथ वीजा दे रहा है, उससे सरकार को डर है कि भारत से जाने वाला सिख जत्था इस सम्मेलन में शामिल हो सकता है। इसके अलावा करतारपुर गलियारा तीर्थयात्रियों के लिए वीजा फ्री भी रहेगा, यह घोषणा भी भारत को सुकूनभरी कम, चिंताभरी ज्यादा लग रही है। उसे लग रहा है कि हर मोर्चे पर बेशर्मी से अडिग रहकर भारत की परेशानी बढ़ाते रहने वाला यह पड़ोसी इतना उदार कैसे हो गया। ऐतिहासिक गुरुद्वारे में जिस तरह खालिस्तान समर्थक अपने बैनर लगाते रहे हैं, यह भी चिंता की एक कड़ी है। शुरूआत में ही पाकिस्तान ने अपनी मंशा जाहिर भी कर दी जब शांति का प्रतीक माने जा रहे इस कार्यक्रम में खालिस्तान समर्थक गोपाल चावला भी मौजूद रहा। उसने पाकिस्तानी सेना प्रमुख कमर बाजवा से मुलाकात भी की।
संकेत तो यहां तक हैं कि बाजवा से मुलाकात के बाद भारत सरकार पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की गुपचुप निगरानी करा रही है। उसे लग रहा है कि अपने सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की मनाही के बावजूद सिद्धू के जाने की कोई ऐसा वजह है जिसका पता लगाने की जरूरत है। कहीं सिद्धू के तार पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी से तो नहीं जुड़ रहे या अनजाने में उन्हें मोहरा बनाने का प्रयास तो नहीं किया जा रहा। गोपाल चावला को सरकार पाकिस्तानी योजना का प्रमुख मोहरा मान रही है।
इसके कारण भी हैं। चावला की वजह से ही पाकिस्तान ने साखी पर भारतीय अधिकारियों को पंजा साहिब गुरुद्वारे में जाने से रोक दिया था। इससे दो दिन पहले भी अफसरों को वाघा बॉर्डर पहुंचे सिख श्रद्धालुओं से मिलने से रोका गया था। वाघा भारतीय सीमा खत्म होने के बाद पाकिस्तान का पहला रेलवे स्टेशन है। पाकिस्तान स्थित भारतीय दूतावास के यह अधिकारी हर साल की तरह भारतीय श्रद्धालुओं से मिलना चाह रहे थे ताकि उन्हें वहां किसी तरह की दिक्कत न हो और विषम परिस्थिति में मदद कर सकें। खालसा पंथ के 320 वें जन्म दिवस के मौके पर वैशाखी के दिन 1800 सिख श्रद्धालु पाकिस्तान में तीर्थ स्थल पर पहुंचे थे। भारतीय श्रद्धालुओं की यह तीर्थयात्रा भारत और पाकिस्तान के बीच धार्मिक यात्राओं के लिए हुए समझौते के तहत होती है। पाकिस्तान के भारत विरोधी अभियान के तहत सिख आतंकियों ने गुरुद्वारा पंजा साहिब के परिक्रमा के दौरान सिख जनमत संग्रह 2020 के पोस्टर भी लगाए थे। चिंताओं की यह वजह हैं कि भारत को असहज होने के बावजूद आगे बढ़ना पड़ रहा है। ?
भारतीय श्रद्धालुओं की यह तीर्थयात्रा भारत और पाकिस्तान के बीच धार्मिक यात्राओं के लिए हुए समझौते के तहत होती है। पाकिस्तान के भारत विरोधी अभियान के तहत सिख आतंकियों ने गुरुद्वारा पंजा साहिब के परिक्रमा के दौरान सिख जनमत संग्रह 2020 के पोस्टर भी लगाए थे। चिंताओं की यह वजह हैं कि भारत को असहज होने के बावजूद आगे बढ़ना पड़ रहा है।
डॉ. अनिल कुमार दीक्षित