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कहां हो छिप गये बटला हाउस मुठभेड़ को फर्जी कहने वालों

कुछ वर्ष पूर्व ही देश की राजधानी में हुए बटला हाउस एनकाउंटर और उस एनकाउंटर में शहीद हो गए दिल्ली पुलिस के जाबांज इंस्पेक्टर मोहनचंद्र शर्मा की शहादत को सदियों तक भुलाया नहीं जा सकता सकता। 19 सितंबर 2008 को हुए एनकाउंटर में धाकड़ पुलिस अफसर शर्मा ने आस्तीन के सांपों की गर्दन में अंगूठा डाल दिया था। पर वे लंबे समय तक चली मुठभेड़ में बुरी तरह से घायल हो गए थे। उसी कारण अंतत: उनकी मृत्यु भी हुई। उन्हीं इंस्पेक्टर शर्मा की जिस आतंकी आरिज खान की गोली से मौत हुई थी, उसे दिल्ली की एक अदालत ने हत्या का दोषी पाया है। वह खूंखार इंडियन मुजाहिदीन से जुड़ा था। आरिज को धारा 302, 307 और आर्म्स एक्ट में दोषी करार दिया है। आजमगढ़ के रहने आरिज खान उर्फ जुनैद को स्पेशल सेल की टीम ने फरवरी 2018 में गिरμतार किया था।

19 सितंबर 2008 को हुए एनकाउंटर में धाकड़ पुलिस अफसर शर्मा ने आस्तीन के सांपों की गर्दन में अंगूठा डाल दिया था। पर वे लंबे समय तक चली मुठभेड़ में बुरी तरह से घायल हो गए थे। उसी कारण अंतत: उनकी मृत्यु भी हुई।

यह कोई बहुत पुरानी बात नहीं है जब इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा की मौत को लेकर जमकर सियासत हुई थी। उनकी शहादत की जानबूझकर वोटों की राजनीति की खातिर अनदेखी हुई थी। कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने बटला हाउस एनकाउंटर को बेशर्मी से फर्जी बताया था। इतना ही नहीं, वे अपनी बात पर अड़े भी रहे थे। वे यहां तक कह रहे थे कि ‘मैं बीजेपी को इसकी न्यायिक जांच की चुनौती देता हूं। मैं अपने बयान पर अडिग हूं।’ अब जब अदालत ने आरिज खान को इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा की हत्या के लिए दोषी मान लिया गया है तो संभव है कि वे सब शर्मसार होंगे जो उस बटला हाउस एनकाउंटर को फर्जी बता रहे थे। क्या अब इस पर भी दिग्विजय सिंह कुछ बोलेंगे? क्या उनमें इतनी नैतिकता बची है कि वे इंस्पेक्टर शर्मा के घर जाकर उसके परिवारवालों से माफी मांगेगे अपने उन शर्मनाक बयानों के लिए? बटला हाउस एनकाउंटर को आॅपरेशन बटला हाउस नाम दिया गया था। यह आॅपरेशन इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकियों के खिलाफ चलाया गया था, जिसमें दो आतंकी मारे गए थे और दो को गिरμतार किया गया था। बटला हाउस एनकाउंटर को लेकर जिस तरह की ओछी राजनीति हुई उससे इतने ठोस संकेत तो मिल गए थे कि भारत में एक बड़ा सा वर्ग देश के दुश्मनों के हक में बोलने से कतई बाज नहीं आता। बटला हाउस पर दिग्गी राजा से मिलते जुलते बयान ही कई अन्य नेताओं ने भी दिए थे। पश्चिम बंगाल की मौजूदा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 17 अक्टूबर 2008 को जामिया नगर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था, “यह (बटला हाउस) एक फर्जी एनकाउंटर था। अगर मैं गलत साबित हुई तो राजनीति छोड़ दूंगी। मैं इस एनकाउंटर पर न्यायिक जांच की मांग करती हूं।” कायदे से तो उन्हें तो अब राजनीति छोड़नी ही चाहिए। उसी सभा में अमर सिंह ने कहा था, ‘आडवाणी जी मेरी निंदा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि मैंने आपकी मांग का समर्थन किया है और मुझे माफी मांगने को कह रहे हैं। बीबीसी और सीएनएन ने भी इस एनकाउंटर पर सवाल उठाए हैं। मैं आडवाणी जी से मांग करूंगा कि वे न्यायिक जांच की मांग में मदद करें।’ लेकिन, तब स्वर्गीय अमर सिंह समाजवादी पार्टी में थे। बात यहीं तक नहीं रूकती क पूर्व केन्द्रीय मंत्री और कांग्रेस के बड़े नेता सलमान खुर्शीद साहब ने 10 फरवरी 2012 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में कांग्रेस की एक रैली को संबोधित करते हुये यह सार्वजनिक दावा किया कि “मैंने जब बटला हाउस एनकाउंटर की तस्वीरें सोनिया गाँधी को दिखाई तब उनकी आँखों से आंसू गिरने लग गये और उन्होंने मुझे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी से बात करने की सलाह दी क” अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आंसू भरी आँखों से दी गई सलाह क्या हो सकती है ?

आतंकियों के जनाजों में भीड़ इसी भारत में आतंकियों के जनाजों में भीड़ भी उमड़ती है। याद कीजिए मुंबई धमाकों के गुनहगार याकूब मेमन की मुंबई में निकली शव यात्रा को । मुंबई में वर्ष 1993 में हुए सीरियल बम विस्फोट के मामले में दोषी याकूब मेमन को नागपुर केंद्रीय कारागार में फांसी दी गयी। इसके बाद उसकी मुंबई में शव यात्री निकली। उसमें भी हजारों लोग शामिल हुए। जिनके हाथों पर मासूमों का खून लगा हो, क्या समाज के एक वर्ग को उनके साथ खड़ा कभी भी होना चाहिए? इस तरह के ही विक्षिप्त लोग इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा के नेतृत्व में हुए एनकाउंटर पर सवाल खड़े कर रहे थे। हिन्दुओं के खून का प्यासा बुरहान हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर के तौर पर काम करते हुए आतंकवादियों की भर्ती कर रहा था। मेमन की आरिज खान भी देश का दुश्मन था। वह साल 2007 से हरकत में आए इंडियन मुजाहिद्दीन का सक्रिय सदस्य था। इंडियन मुजाहिद्दीन को पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों से मदद मिलती रही है। उसके 2007 में उत्तर भारत में हुए कई धमाकों से तार जुड़े हुए थे। इसी संगठन ने 2008 में अहमदाबाद में बड़ा धमाका किया था, जिसमें 50 लोग मारे गए थे। एक बात समझ से परे है कि मुसलमानों का एक वर्ग बिना कुछ समझे बूझे आतंकियों को अपना नायक क्यों मानने लगता है? बुरहान वानी को जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने के आरोपी उमर खालिद ने शहीद साबित करने की कोशिश की थी। उमर खालिद ने अपने फेसबुक पोस्ट पर बुरहान की तुलना लैटिन अमेरिकी क्रांतिकारी चे ग्वेरा तक से कर दी। वही खालिद उमर दिल्ली दंगों का मुख्य मास्टरमाइंड है। फिलहाल वह जेल में है। देखिए एक बात सबको समझ आ जानी चाहिए कि आतंकवाद पर सारे देश को एक साथ मिल कर लड़ना होगा। भारत आतंकवाद की बहुत बड़ी कीमत अदा कर चुका है। इस मसले पर राजनीति तो किसी को नहीं करनी चाहिए। अगर हम आतंकवाद जैसे सवाल पर भी एक नहीं हुए तो फिर मान लें कि हम आतंकवाद से चल रही जंग में कभी भी विजय हासिल नहीं कर सकेंगे।

आर.के.सिन्हा