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शिवरात्रि पर ‘रुद्राभिषेक’ और ‘रुद्री पाठ’ का महत्त्व

विंध्यवासिनी सिंह

महाशिवरात्रि भगवान भोले भंडारी का बहुत महत्वपूर्ण पर्व है। कहते हैं, इस दिन जो भगवान शंकर की आराधना और मन से पूजन अर्चन करता है, उसके तमाम संकट दूर हो जाते हैं। यूं भी चाहे कोई व्यक्ति अच्छा हो, या कोई व्यक्ति बुरा हो, सभी का दुख हरने वाले को ही महाकाल कहते हैं। महाशिवरात्रि आने वाली है और शास्त्रों के जानकार बताते हैं कि इस दिन महारुद्राभिषेक करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। महारुद्राभिषेक करने से सुख संपत्ति के साथ शत्रुओं का साया भी समाप्त हो जाता है, तो वहीं समाज में प्रतिष्ठा भी मिलती है। इतना ही नहीं, धर्म के जानकार कहते हैं कि महारुद्राभिषेक कराने से दुखों का अंत होता है, और मां लक्ष्मी की भी कृपा बनी रहती है। आइए जानते हैं, तमाम विपदाओं को दूर करने, और संपन्नता से आपको परिपूर्ण करने में उपयोगी महारुद्राभिषेक यज्ञ किस प्रकार किया जाता है।

शिव भक्तों के लिए शिवरात्रि के दिन की पूजा अर्चना बहुत महत्वपूर्ण होती है। वहीं महारुद्राभिषेक के लिए आपको निम्न वस्तुओं की जरूरत पड़ती है।

1. इनमें घर का वातावरण सुखद और पवित्र रखने के लिए दूध

2. अचानक नुकसान या परिवारिक कलर से बचने के लिए दही

3. ज्ञान प्राप्त करने के लिए शहद

4. खुशहाली के लिए शक्कर की आवश्यकता पड़ती है

5. साथ ही नारियल पानी जो शत्रुओं का प्रभाव और प्रेतों को दूर करता है।

6. इसके अलावा भस्म भी इसी काम में लाया जाता है।

7. वर्षा का जल जो नेगेटिव पॉवर को आप से दूर रखता है।

8. गन्ने का रस जो माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के काम में आता है।

9. गंगाजल जो तमाम ग्रहों द्वारा उत्पन्न दोष निवारण करता है।

10. सुखद स्वास्थ्य के लिए भांग और

11. कारोबार में अड़चनों के लिए घी का प्रयोग किया जाता है।

किस दिन कराएं ‘रुद्राभिषेक’?

किसी भी तीथि को रुद्राभिषेक नहीं होता है, बल्कि इसके लिए विशेष तिथियां होती हैं। कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या इसके लिए निश्चित की गयी हैं, तो शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों में ही रुद्राभिषेक किया जाता है। शिवरात्रि पर क्या लगाएं ‘भोग’?

शिवरात्रि पर भगवान शिव को प्रसन्न करना है, तो बेर, बेलपत्र, धतूरा और पंचामृत का भोग लगाएं। वहीं आप चाहे तो महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ को मखाने की खीर का भोग भी लगा सकते हैं। महाशिवरात्रि की अहमियत हमेशा ही विशिष्ट रहती है, क्योंकि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। आप कह सकते हैं कि इस दिन शिव और शक्ति का मिलन हुआ था। जैसा कि सभी जानते हैं कि तमाम देवताओं में शिवजी ही एकमात्र ऐसे देवता हैं, जो बेहद आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं, और अपने भक्तों को मनोवांछित आशीर्वाद देते हैं। शास्त्रों में वर्णित तमाम ऐसी कथाएं हैं, जब भगवान अपने भक्तों की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें ऐसे ऐसे आशीर्वाद दे बैठते हैं जो किसी और देवता द्वारा नहीं दिए जा सकते! इसीलिए उन्हें औघड़ दानी भी कहा जाता है। तो इस शिवरात्रि को आप भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए महा रुद्राभिषेक का यज्ञ अवश्य करें।

शिवरात्रि पर ‘रुद्री पाठ’

रुद्राभिषेक के अलावा अगर शिवरात्रि के दिन ‘रुद्री पाठ’ का आयोजन किया जाता है तो इसका विशेष फल मिलता है। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि ‘रुद्री पाठ’ की पूजा प्रकांड पंडित द्वारा ही कराया जाये। क्योंकि इसके गलत मंत्रोच्चारण से इसका उल्टा असर पड़ता है और यह विनाशकारी होता है।

‘रुद्री पाठ’

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं

ब्रह्मवेदस्वरूपम’

निजं निगुर्णं निर्विकल्पं निरीहं

चिदाकाशमाकाशवासं भजेअहम

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा घ्य़ान

गोतीतमीशं गिरीशम’

करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार

संसारपारं नतोअहम

तुश्हाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत

कोटिप्रभा श्री शरीरम’

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा

लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा’’

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं

नीलकण्ठं दयालम’

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं

सर्वनाथं भजामि’’

प्रचण्डं प्रकृश्ह्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं

भानुकोटिप्रकाशम’

त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजे.अहं

भवानीपतिं भावगम्यम’’

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा

सज्जनानन्ददाता पुरारी’

चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद

प्रभो मन्मथारी’’

न यावत.ह उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह

लोके परे वा नराणाम’

न तावत.ह सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद

प्रभो सर्वभूताधिवासम’’

न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतो.अहं सदा

सर्वदा शम्भु तुभ्यम’

जरा जन्म दु:खौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि

आपन्नमामीश शम्भो’’

रुद्राश्ह्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोश्हये ’

ये पठन्ति नरा भक्त्या तेश्हां शम्भु:

प्रसीदति’’

इति श्री गोस्वामी तुलसिदास कृतम श्रीरुद्राश्ह्टकम संपूर्णम लल