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देश में बढ़ती आर्थिक असमानता का समाधान जरूरी

भारत आज दुनियां में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन आर्थिक विकास की उच्चदर बढ़तीअसमानता से जुड़ी हुई है, जिसमें आर्थिक सामाजिक एवम् क्षेत्रीय और ग्रामीण शहरी असमानता शामिल है। हमारे देश में बड़ती असमानता चिन्ताजनक है, योंकि आर्थिक सामाजिक और राजनैतिक असमानताओं का प्रभाव हमारे तेज समग्र और तेज विकाश को छति पहुंचाता है वत ऐसा आता है, जब हम दुनियांभर में आर्थिक असमानता को लेकर भावुक होते हैं, जबकि हमारे ही देश में अमीरों और गऱीबों के बीच में चौड़ी होती खाई की ख़बर अब बासी हो चुकी है। असमानता से अधिक चिन्ता की बात यह है कि दोनों पक्षों का प्रतिनिधित्व करने वाले विशेषज्ञ लोगों के बीच बोलते हैं कि संपत्ति विवरण में यह दीर्घाकालिक प्रभाव है जो अमीर को और ज़्यादा अमीर और गऱीब को और ज़्यादा गऱीब बना रहा है।

हाल ही मे किये गये ओक्सफेम के सर्वे के अनुसार हमारे देश मे 10 फ़ीसदी सर्वाधिक धनी लोगों के पासदेश की कुल संपत्ति का कऱीब 80.7 फ़ीसदी है। जबकि 90फीसदी आवादी के पास केवल 19.3 फ़ीसदी संपत्ति है वही भारत के एक फ़ीसदी लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 51.53 फ़ीसदी हिस्सा है वही 60 फ़ीसदी आबादी के पास 4.8 फ़ीसदी संपत्ति है। देश के शीर्ष 9 अमीरों की संपत्ति 50 फ़ीसदी गऱीब आबादी की संपत्ति के बराबर है। हमारी सरकारें स्वास्थय सेवा और शिक्षा जैसी सार्वजनिक सेवाओं का कम विक्रय पोषण असमानता को और बडावा दे रही है और वहीं दूसरी ओर कम्पनियाँ और अमीरों पर कम कर लगा रही है। कर चोरी रोकने मे भी नाकाम रही है। आर्थिक असमानता से सबसे ज़्यादा गऱीब और महिलायें पृभावित हो रही है। रिपोर्ट के मुताबिक देश के सबसे अमीर सक्स मुकेश अम्बनी की कुल संपत्ति 2.8 लाख करोड़ है। वहीं हमारे देश में गऱीब दो वक्त की रोटी और बच्चों की दवाओं के लिये जूझ रहे है। वहीं अमीरों की संपत्ति लगातार बड़ती जा रही है। हमारे देश में गऱीब ओर अमीर के बीच मे बहुत बड़ी खाई है और ये खाई लगातार बड़ती जा रही है। कुछ दिनों पहले इन्टरनेशनल राइट्स गुरूप आँक्सफेम ने एक सर्वे किया, जिसमें बताया गया कि 67 करोड़ भारतीयों की संपत्ति मे महज एक फ़ीसदी संपत्ति का इज़ाफ़ा हुआ है। यानी देश की आधी से ज़्यादा आबादी की संपत्ति महज एक फ़ीसदी बड़ी और एक फ़ीसदी आबादी ने लगभग 73 फ़ीसदी लोगों ने क़ब्जा किया। इसी तरह गऱीबों और अमीरों में यह अंतर लगातार बड़ता जा रहा है। हमारे देश में छमता है कि नागरिकों को एक अधिकार युक्त जीवन देने के साथ समाज में व्याप्त असमानता को दूर करे हमारी सरकारों को शिक्षा एवम् स्वास्थ्य के क्षेत्र मे सुधार लाना होगा। गऱीबों के समर्थक बने रहने की सरकारी नीति ने मानवपूँजी के विश्वास को फेंकने से रोका है। अत: बड़ती असमानता को दूर करने के लिये सरकार को नीति परिवर्तन करने होगे जन नीति को इस पृकार से गड़ा जाना चाहिये कि सरकार समाज हित को ध्यान मे रखते हुऐ निजी उधंम को अधिक से अधिक बडावा देने की ज़रूरत है पढ़े लिखे बेरोजग़ारों को उनकी इच्छा के अनुसार रोजग़ार दिये जाये। हमारा देश एक कल्याणकारी देश है। हम अति गऱीब या असमानता को अनुमति नही दे सक्ते विभिन्न सरकारों के कार्यकालो मे शुरू की गयी। योजनाओं जैसे शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना आदि योजनाओं के अधिकारो को प्रभावी रूप से उपयोग करने से आर्थिक असमानता पर लगाम लगेगी। आर्थिक असमानता अपरिहार्य नही है और अर्थ शास्त्र में ऐसा कोई नियम नही बैंडों कहे कि अमीर को और ज़्यादा अमीर होना चाहिये वह भी तब जब गऱीब दवा के अभाव मे एवम् भूख से मर रहा हो इस स्थिति मे इतने कम लोगों के हाथ मे इतनी अधिक संपत्ति का कोई औचत्य नही है। आर्थिक असमानता को दूर करने के लिये अब हमें गंभीर होने की आवश्यकता है हमें अपने देश की कर व्यवस्था ठीक करने पर ही हम योग्य किशी भी संपत्ति पर सही ढंग से कर बसूला जा सके तथा देश और समाज उससे लाभान्वित हो सके ओक्सफेम की रिपोर्ट में यह भी साबित किया गया है दुनिया के सर्वाधिक अमीर लोगों द्वारा अर्जित अधिकाँस संपत्ति कर बचत करने वाली व्यवस्था के ज़रिये इकट्ठा हो गयी है अगर इस धन पर उचित ढंग से कर लगे तो दुनिया की सरकारों की पृतिबर्ष 190 अरब डाँलर की कमाई हो सक्ती है। पर दिक़्क़त ये है कि सरकारें धन कुबेरो को पक्ष में ही खड़ी नजऱ आती है। एक तरफ़ जब दुनिया में मानवाधिकार और जन कल्याण को लेकर तरह-तरह की पहल हो रही है। ऐसे वक्त में गऱीबों की ऐसी स्थिति होना गऱीबी निवारण के प्रयासों पर प्रश्नचिन्ह लगाती है। धन को लेकर समय के साथ हमारी अवधारणा बदल गयी है। इसे ज़रूरत के बजाय महत्वाकांक्षा की वस्तु बना दिया गया है। यही कारण है कि दुनिया के सर्वाधिक अमीर लोगों के पास इतना धन है वह भी और धन जुटाने का प्रयास या दुष्पृयास करने से नहीं चूकते अमीरों को धन की लालसा के चलते देश के अनगिनत गऱीब नरकीय जीवन जीने के लिये विवस है। यह बात सही है कि आज गऱीब चुप है और स्थित को सहन कर रहै है लेकिन ऐसा समय दूर नहीं है जब उनकी सहन शक्ति ख़त्म हो जायेगी और सायद उनके पाल अपने अधिकार के आर्थिक संसथानो को पाने के लिये महज़ संघर्ष का रास्ता बचेगा समय रहते हमें इस खांई को पाटने के लिये क़दम उठाने होगे अन्यथा यह भविष्य के लिये एक बड़ा संकट शाबित हो सक्ता है सरकारों को इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है।