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छोटे-मझोले मंझधार में

टेक्सटाइल और साइकिल इंडस्ट्री, मंडी गोबिंदगढ़ की स्टील इंडस्ट्री, मुरादाबाद के हैंडीक्राट, लखनऊ की चिकन जरदोजी, आगरा और कानपुर की फुटवियर इंडस्ट्री, जमशेदपुर की आॅटो पार्ट्स इंडस्ट्री, कोटा की स्टोन इंडस्ट्री, भोपाल-इंदौर की गारमेंट इंडस्ट्री और दिल्ली के ट्रेडर्स की खोज-खबर ली।

लुधियाना: 1.5 लाख नौकरियों पर खतरा टेक्सटाइल और गारमेंट उद्योग में चार महीने से बिक्री और उत्पादन में 10 फीसदी गिरावट है। पंजाब जिनिंग मिल्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट भगवान बंसल ने बताया कि पंजाब के मालवा

इलाके की 422 जिनिंग इकाइयों में से सिर्फ 56 चल रही हैं। 2007 से 2019 के बीच 366 इकाइयां बंद हो चुकी हैं। बंसल ने आशंका जताई कि पंजाब के टेक्सटाइल उद्योग में 1.5 लाख लोगों का रोजगार संकट में है। इस सेक्टर को राहत के लिए केंद्र सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। ड्यूक के सीएमडी कोमल जैन का कहना है कि यॉर्न की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव से लागत बढ़ जाती है। आर्थिक सुस्ती से उबरने में सहयोग देने के बजाय बैंकों ने कर्ज सीमा बढ़ाने से हाथ खींच लिए हैं। इंडस्ट्री को उबारने के लिए जीएसटी दरों में एकरूपता लाने की जरूरत है। मैन मेड यॉर्न पर जीएसटी 12 फीसदी तो कॉटन और एक्रिलिक यॉर्न पर पांच फीसदी है। 999 रुपए तक की कीमत वाले गारमेंट पर पांच फीसदी तो 1,000 रुपये या इससे अधिक कीमत वाले गारमेंटपर 12 फीसदी जीएसटी लगता है।

सरकारी खरीद के भरोसे साइकिल इंडस्ट्री
राज्य सरकारों से आॅर्डर मिलने की वजह से लुधियाना की साइकिल इंडस्ट्री में सुस्ती का असर कम है। 45 फीसदी खरीद राज्य सरकारें ही कर रही हैं। जनवरी से जुलाई तक छह राज्यों ने 23 लाख साइकिल के आॅर्डर दिए हैं। पूरे साल में राज्य सरकारों से करीब 50 लाख साइकिल के आॅर्डर मिलने की उम्मीद है। एवन साइकिल के सीएमडी ओंकार सिंह पाहवा ने बताया कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से बड़ा आॅर्डर मिलने वाला है। पश्चिम बंगाल, कनार्टक और गुजरात के आॅर्डर की सप्लाई चल रही है। लेकिन सरकारी खरीद छोड़ दें तो पिछले दीवाली सीजन के बाद से बाजार नहीं उठा है। 10 महीने में बिक्री पांच फीसदी घटी है। विस्तार योजनाएं रुकी हुई हैं। छोटी कंपनियों को बैंकों से फाइनेंस में दिक्कत है। देश में एक भी स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट सिरे न चढ़ने से साइकिल ट्रैक नहीं बन पाए हैं। इलेक्ट्रिक व्हीकल और साइकिल पर पांच फीसदी जीएसटी है जबकि साइकिल पर 12 फीसदी है। इसे कम किया जाना चाहिए।

मंडी गोबिंदगढ़: ठंडी पड़ी चिमनियां
पांच महीने से कंस्ट्रक्शन, आॅटोमोबाइल और इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में मांग घटने से पंजाब के मंडी गोबिंदगढ़ की सेकंडरी स्टील इकाइयों में उत्पादन करीब 25 फीसदी घट गया है। स्टील कीमतों में पिछले साल की तुलना में 30 फीसदी गिरावट के बावजूद मांग नहीं बढ़ी है। ब्रांडेड टीएमटी बार और बिलेट की कीमतें चार महीने में 21 फीसदी घटी हैं। स्टील फर्नेस एसोसिएशन केप्रेसीडेंट महेंद्र गुप्ता ने कहा कि अप्रैल से स्टील की मांग 25 फीसदी गिरी है। कंस्ट्रक्शन और आॅटोमोबाइल में मांग कम होने से फर्नेंस और रोलिंग मिलों में उत्पादन 25 फीसदी घट गया है। गुप्ता को उम्मीद है कि मार्च 2020 तक खरीदे गए बीएस-4 वाहनों की वैधता पंजीकरण अवधि तक किए जाने से कुछ राहत मिलेगी। दो-तीन महीने में सुस्ती दूर हो सकती है।

मुरादाबाद: जीएसपी का असर
अमेरिका द्वारा जनरलाइज्ड सिस्टम आॅफ प्रेफरेंस (जीएसपी) की सूची से भारत को निकालने का सीधा असर मुरादाबाद के हैंडीक्राμट निर्यात पर दिखता है। भारत के हैंडीक्राμट पर अमेरिका में पांच फीसदी आयात शुल्क लगने लगा है। निर्यातकों को मर्चेंडाइज एक्सपोर्ट इन्सेंटिव स्कीम (एमईआइएस) के तहत मिलने वाली सात फीसदी रियायत भी 31 जुलाई से बंद हो गई है। ग्लोब एक्सपोर्ट कॉरपोरेशन के प्रमुख सत्यपाल का कहना है कि जून के मुकाबले निर्यात आॅर्डर 20-25 फीसदी घट चुके हैं। मांग में सुस्ती का असली असर सितंबर के बाद दिखेगा जब नए साल और क्रिसमस के आॅर्डर पूरे करने के बाद सीजनल सुस्ती शुरू होती है। उनका अनुमान है कि इस वर्ष मुरादाबाद का हैंडीक्राμट निर्यात 6,000 करोड़ रुपये से ज्यादा नहीं हो पाएगा, जबकि पिछले साल निर्यात 8,500 करोड़ के आसपास था। मुरादाबाद में करीब 2,000 निर्यातक और निमार्ता होते थे, सुस्ती के चलते इनमें दस फीसदी कारोबार बंद कर चुके हैं। तीन-साढ़े तीन लाख श्रमिकों में से करीब 35,000 कर्मचारियों की छटनी हो चुकी है। सितंबर के बाद छंटनी और तेज हो सकती है।

लखनऊ: सरकार से भी उम्मीद नहीं
उत्तर प्रदेश में जरदोजी का काम लखनऊ, बरेली, बदायूं, चंदौली, उन्नाव, कासगंज, ललितपुर, शाहजहांपुर तक फैला हुआ है। चिकन का काम लखनऊ के आसपास लखीमपुर, सीतापुर, बाराबंकी, उन्नाव, फैजाबाद और रायबरेली में भी होता है। चिकन और जरदोजी कारोबारी मो. नदीम कहते हैं, एक समय प्रदेश में लाखों लोग इससे जुड़ेथे, अब सिर्फ 25 लाख रह गए हैं। लोग दूसरे काम- धंधे करने पर मजबूर हो गए हैं। नोटबंदी और जीएसटी के बाद हालात बदतर हुए हैं। वाराणसी इंडस्ट्रियल इस्टेट एसोसिएशन के महामंत्री पीयूष अग्रवाल कहते हैं कि जिस माल का दाम पहले दो-तीन महीने में मिल जाता था, अब एक साल बाद भी नहीं मिल पा रहा है। रिसर्जेंट इंडिया लिमिटेड के एमडी ज्योति प्रकाश गड़िया बताते हैं कि सबसे ज्यादा दिक्कत फंडिंग की है। एसोचैम के स्टेटप्रेसीडेंट विजय आचार्या कहते हैं कि 90 फीसदी एमएसएमई को कच्चा माल नकद खरीदना पड़ता है और क्रेडिट पर बेचना पड़ता है। पेमेंट में देरी से बाजार में पैसा फंस रहा है। सरकार से मदद के सवाल पर इंस्टीट्यूट आॅफ इंटर्नल आॅडिटर्स (आइआइए) के स्टेट चेयरमैन पंकज गुप्ता कहते हैं कि जब सरकारी विभागों से ही उद्यमियों को पेमेंट नहीं मिल रहा तो सरकार मदद क्या करेगी।

जमशेदपुर: अब तक 35 हजार बेरोजगार
जमशेदपुर की आॅटो और स्टील सेक्टर की ज्यादातर एंसिलरी (सहायक) यूनिट पूरी तरह टाटा मोटर्स और टाटा स्टील पर निर्भर हैं। आदित्यपुर स्मॉल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के प्रेसिडेंट इंदल अग्रवाल ने बताया कि टाटा मोटर्स कभी हर महीने 8,000- 9,000 गाड़ियां बनाती थी, जो अब 3,000- 4,000 रह गई है। यहां आॅटोमोबाइल सेक्टर से जुड़ी करीब 1,500 इकाइयां हैं। इनमें 70-80 फीसदी टाटा मोटर्स पर निर्भर हैं। इनका उत्पादन 40-50 फीसदी घट गया है। टाटा मोटर्स बीच-बीच में ब्लॉक क्लोजर (कई रोज के लिए उत्पादन बंद) कर रही है, इसलिए कुछ इकाइयों में दो शिμट तो कहीं एक शिμट में ही काम हो रहा है। इस वजह से ठेके पर काम करने वाले 30-35 हजार लोग बेरोजगार हो गए हैं। सिंहभूम चैंबर आॅफ कॉमर्स केप्रेसिडेंट सुरेश सोंथालिया ने बताया कि जुलाई से 18 इंडक्शन यूनिट बंद हैं। टाटा से पेमेंट में भी देर हो रही है। पहले 30 दिनों में पैसे मिल जाते थे, अबतीन महीने लग रहे हैं। टाटा पर निर्भरता कम करने के लिए डाइवर्सिफिकेशन हो रहा है। सरकार से यहां रेल कोच फैक्टरी और ट्रैक्टर कंपनी स्थापित करने की मांग की गई है। हाल में सरकार ने जो कदम उठाए हैं, उनसे फायदा मिलने की उम्मीद है। उन्होंने कहा, ह्लसरकार बैंकों में पूंजी डालेगी तो इससे कर्ज मिलने में आसानी होगी। सरकारी विभागों में वाहनों की खरीद पर रोक हटाने और डेप्रिसिएशन रेट 15 से बढ़ाकर 30 फीसदी करने से भी वाहनों की मांग बढ़ने की उम्मीद है।

आगरा-कानपुर: नौ माह से टेनरी बंद
आगरा और कानपुर उत्तर प्रदेश की लेदर इंडस्ट्री के प्रमुख सेंटर हैं। पूरे देश में जूतों की सप्लाई करने वाले आगरा के हींग की मंडी बाजार के व्यापारी सनी मेहरा ने बताया कि घरेलू बिक्री में इस साल 60 फीसदी गिरावट है। दूसरी तरफ निर्यात में भी बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं है। भारत से लेदर फुटवियर का 80 फीसदी निर्यात यूरोप को होता है। आगरा फुटवियर मैन्युफैक्चरर्स ऐंड एक्सपोर्टर्स चैंबर के अध्यक्ष पूरन डावर ने बताया कि इस साल निर्यात पिछले साल जितना ही रहने के आसार हैं। पिछले वित्त वर्ष देश से 15,351 करोड़ और आगरा से 3,107 करोड़ रुपये का फुटवियर निर्यात हुआ था। यूपी लेदर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष ताज आलम ने बताया कि उन्नाव जिले की टेनरियां नौ माह से बंद हैं। इसका पूरा लाभ पाकिस्तान को मिला है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में उनका कारोबार पांच फीसदी बढ़ा है, जबकि हमारा 10 फीसदी कम हुआ है। कानपुर में चमड़ा और लेदर उत्पाद बनाने वाली ज्यादातर टेनरी गंगा नदी के किनारे हैं। इस साल जनवरी-फरवरी में कुंभ मेले के कारण 15 नवंबर 2018 से इन्हें बंद कर दिया गयाथा। हालांकि अमेरिका-चीन ट्रेड वार से इंडस्ट्री को उम्मीद भी है। निर्यातकों को लगता है कि वे अमेरिकी बाजार में पैठ बना लेंगे। अभी फुटवियर निर्यात में अमेरिका का हिस्सा तीन-चार फीसदी है। अमेरिका के फुटवियर आयात में चीन की हिस्सेदारी 60 फीसदी है। अमेरिका ने चाइनीज फुटवियर पर 25 फीसदी ड्यूटी लगा दी है।

इंदौर: आधा रह गया गारमेंट उत्पादन
मध्य प्रदेश में सुस्ती की सबसे ज्यादा मार आॅटोमोबाइल और गारमेंट इंडस्ट्री पर पड़ी है। इनमें उत्पादन लगभग 50 फीसदी घट गया है, इस वजह से 30 फीसदी कर्मचारियों की छटनी हो चुकी है। इंदौर से लगे पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में आॅटो पार्ट्स बनाने वाले कई संयंत्र और स्पिनिंग मिलें हैं। पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी का कहना है कि निर्यात कम होने से स्पिनिंग मिलों का उत्पादन 35 फीसदी घट गया है। पूर्व में कई संगठनों से जुड़े रहे कारोबारी राजेंद्र कोठारी ने बताया कि नौबत यहां तक आ गई कि इंदौर के आठ-दस गारमेंट कारोबारी बांग्लादेश चले गए और वहीं उत्पादन कर रहे हैं। भोपाल से सटे मंडीदीप में भी स्पिनिंग मिलें हैं। मंडीदीप उद्योग संगठन के उपाध्यक्ष एन.के. सोनी ने बताया कि जून से मांग में भारी कमी है। सोनी ने बताया कि मंडीदीप में आॅटोमोबाइल, स्पिनिंग औरप्लास्टिक प्रोडक्ट बनाने वाली 350 इकाइयां हैं। यहां का सालाना टर्नओवर 3,500 करोड़ रुपये है। लेकिन लगता है कि इस साल कारोबार आधा रह जाएगा। गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र में भेल की सहायक कंपनियां ज्यादा हैं। उद्योगपति सुनील कुमार पाली ने बताया कि यहां की करीब 950 इकाइयों में से सबने उत्पादन आधा कर दिया है। एक-डेढ़ साल पहले स्थिति खराब होनी शुरू हुई थी, अब संकट काफी गंभीर हो गया है।

रायपुर: खराब नीतियों का दिख रहा असर
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से सटे उरला औद्योगिक क्षेत्र की करीब 500 स्टील इकाइयों ने मांग न होने के कारण उत्पादन 30 से 35 फीसदी घटा दिया है। उरला इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष अश्विन गर्ग का कहना है, ह्लमांग नहीं होने के कारण इंडस्ट्री उत्पादन घटाने को मजबूर है। इससे लोग बेरोजगार भी हो रहे हैं। भिलाई में स्टील अथॉरिटी आॅफ इंडिया का बड़ा स्टील प्लांट बीएसपी होने के बाद भी यहां के सहायक उद्योगों (एंसिलरी) को काम नहीं मिल रहा है।ह्व यही हाल राज्य के बिलासपुर, कोरबा और रायगढ़ इलाकों का है। छत्तीसगढ़ में स्टील और कोयला आधारित उद्योग ज्यादा हैं। लेकिन सरकार की कोयला नीति का बुराप्रभाव स्टील और पावर इंडस्ट्री पर पड़ा है।

कोटा: एक तिहाई रह गई स्टोन सप्लाई
रियल एस्टेट सेक्टर में सुस्ती के कारण कोटा स्टोन उद्योग पर अस्तित्व का संकट आ गया है। हड़ौती कोटा स्टोन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष आर.एन. गर्ग ने बताया कि समूचे हड़ौती क्षेत्र (पूर्वी राजस्थान के कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ जिले) में चार-पांच साल पहले 5,000 स्टोन इकाइयां थीं, लेकिन आज उनकी संख्या आधी से भी कम रह गई है। हड़ौती से रोजाना 2,000 ट्रकों (प्रति ट्रक औसतन 8,000 वर्ग फुट स्टोन) की सप्लाई होती थी। इस साल के शुरू में यह घटकर 900- 1,000 ट्रक रह गई थी। अब बमुश्किल 700 ट्रकों की सप्लाई हो पा रही है। एसोसिएशन के महासचिव और एन.के. इंडस्ट्रीज के प्रमुख रोहित सूद ने बताया कि चार-पांच साल पहले स्टोन उद्योग में करीब पांच लाख श्रमिक काम करते थे। अब इनकी संख्या दो-ढाई लाख के आसपास होगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित राहत पैकेज पर सूद का कहना है कि सरकार ने अर्थव्यवस्था में सुस्ती के संकेत मिलते ही कदम उठाया, यह अच्छी बात है। लेकिन इन घोषणाओं के लागू होने पर ही मांग सुधरेगी।

दिल्ली: त्योहारों से भी उम्मीद नहीं
दिल्ली में गारमेंट के हब गांधीनगर और लाजपत नगर में कारोबारियों को घरेलू और निर्यात, दोनों मोर्चेपर सुस्ती का सामना करना पड़ रहा है। त्योहारी सीजन से भी उन्हें कोई खास उम्मीद नहीं है। निर्यात करने वाली फर्म प्राइम एक्सपोर्ट के कुलदीप गोयल कहते हैं कि पिछले साल से निर्यात करीब 30 फीसदी कम है। यह रुख सात-आठ महीने से है। ब्रेक्जिट के चलते ब्रिटेन में अनिश्चितता है। वहां से आॅर्डर आधे से भी कम रह गए हैं। बिजनेस घटने के चलते सुपरवाइजरी स्टाफ हटाना पड़ा है। उनका कहना है कि नौकरियों में करीब 20-25 फीसदी कटौती हुई है। पारंपरिक परिधानों का कारोबार करने वाली फर्म सूर्या एथनिक के अमित अग्रवाल के अनुसार, उनके सेगमेंट में अंतरराष्ट्रीय मांग 2012 के बाद से ही सुस्त है। पहले औसतन 30 फीसदी मार्जिन मिल जाता था, लेकिन मांग घटने के बाद अब 15-20 फीसदी मार्जिन मिलना भी मुश्किल है। घरेलू बाजार में सस्ते गारमेंट की सप्लाई करने वाले गांधीनगर में भी पहले जैसी रौनक नहीं दिखाई देती। गारमेंट मैन्युफैक्चरिंग फर्म एम.एस. ट्रेडिंग के मनीष जैन कहते हैं कि दो साल में मांग घटकर 30-40 फीसदी बच गई है। सबसे ज्यादा जीएसटी से धक्का लगा है। छोटे व्यापारी जीएसटी की औपचारिकताएंपूरी नहीं कर पाते और नकदी में कारोबार करना मुश्किल हो गया है। त्योहारी मांग के सवाल पर जैन कहते हैं कि अब ऐसी बिक्री बहुत कम रह गई है। आॅनलाइन बिक्री के जमाने में खरीदार अब त्योहार का इंतजार नहीं करते।

गिरावट हर क्षेत्र में
?10% गिरावट आई है लुधियाना की टेक्सटाइल इंडस्ट्री के उत्पादन में
?30% कमी आ गई है गारमेंट के निर्यात में
?25% घट गया है मंडी गोबिंदगढ़ की सेकंडरी स्टील इंडस्ट्री का उत्पादन
?25% गिरावट हैंडीक्राμट के निर्यात आॅर्डर में, सितंबर के बाद स्थिति और बिगड़ने का अंदेशा ?5% रह गए हैं चिकन कारोबार से जुड़े लोग, सरकार से भी उम्मीद नहीं
?60% घट गई है घरेलू बाजार में आगरा के फुटवियर की बिक्री, निर्यात भी कम
?50% तक गिरावट आई है जमशेदपुर के आॅटो एंसिलरी उत्पादन में
?30% कर्मचारियों की छटनी मध्य प्रदेश की गारमेंट इंडस्ट्री में, बांग्लादेश जा रहे कारोबारी ?50% घट गई है कोटा स्टोन इकाइयों की संख्या, स्टोन सप्लाई एक तिहाई घटी