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कुलदीप जाधव के सम्बन्ध में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसले का मतलब

पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी श्री कुलदीप जाधव का,पाकिस्तानी खुफिया तंत्र ने ईरान से अपहरण कर, उन्हें जासूसी और आतंकवाद के आरोपों के लिए, एक झूठ-मूठ के सेनिक न्यायालय के निर्णय के आधार पर मृत्यु की सजा दीथी, को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसले के उपरांत आशा की किरण अवश्य दिखाई दी होगी। भारत की एक प्रार्थना, जिसमें उनके मृत्यु दंड को निष्प्रभावी करने की मांग की गयीथी, क्योंकि पाकिस्तान ने अनेकों अंतर्राष्ट्रीय संधियों का तो उल्लंघन किया ही है, साथ ही जाधव से दबाव डालकर स्वीकृतिप्राप्त की है, अत: न्यायालय ने अपने 06 जुलाई, 2019 को 15-1 से लिए गए निर्णय में यह स्पष्ट किया कि पाकिस्तान श्री जाधव को फांसी नहीं दे सकता और उन्हें भारतीय दूतावास के अधिकारियों से मिलने की उपयुक्त एवं निष्पक्ष रूप से सुविधा होनी चाहिए। निर्णय ने पाकिस्तान से यह भी अपेक्षा की है कि वह श्री जाधवपर लगाए गए आरोपों की समीक्षा करे, जिसके विरोध में पाकिस्तान ने कहा ”कि भारत ने हेग स्थित न्यायालय में उस पर घात लगाकर आक्रमण किया है”।

यद्यपि भारत का पाकिस्तान में बन्द भारतीय कैदियों का आपसी मार्ग से मुक्त कराने के प्रयास अभी तक ढीले-ढाले ही रहे हैं, वर्तमान मामले में भारत ने यह युक्ति अपनायी कि समस्त विश्व ही अब पाकिस्तान को एक दुष्ट राष्ट्र के रूप में स्वीकार कर रहा है। इस क्रम में भारत बार-बार जोर देता रहा है किपाकिस्तान, वियना समझौते की धारा 36 का उल्लंघन करता रहा है, जिसके अनुसार किसी विदेशी नागरिक की गिरμतारी, कारावास अथवा उसपर मुकदमा चलाने से पूर्व उस देश के दूतावास को सूचना देना वांछनीय होता है। भारत के वकील, श्री हरीश साल्वे ने दो महत्वपूर्ण तर्कों को आगे रखा है । इनमें से पहला गिरμतारी की प्रक्रिया के संदर्भ में है, जिसके तुरंत बाद इस्लामाबाद स्थित भारतीय दूतावास के अधिकारियों को सूचित नहीं किया गयाथा । वस्तुत: यह कार्यवाही तीन सप्ताह से अधिक की अवधि व्यतीत होने के उपरांत की गई, जब भारत को किसी भी प्रकार का समाचार प्राप्त हो सका । इस दौरान, पाकिस्तान के ही आंतरिक स्रोतों के अनुसार बलपूर्वक, जेल के अंदर ही उनसे एक स्वीकृतनामापर हस्ताक्षर भी करवा लिए गए । और उस समय वहां पर कोई भी विधिक प्रतिनिधि उपलब्ध नहीं था । उनका दूसरा तर्क था कि श्री जाधव को न तो भारतीय दूतावास के किसी अधिकारी से मिलने दिया जाए और न किसी प्रकार का पत्राचार करने दिया गया । साथ ही उन्हें यह भी नहीं बताया गया कि वियना समझौते के अंतर्गत बंदी के रूप में उनके निहित क्या-क्या अधिकार थे ? अंतर्राष्ट्रीय विधिकतंत्र में सेना के न्यायालयों जो द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत, तानाशाहों और सैन्य शासकों ने शीघ्र न्याय की अवधारणा हेतु गठित किए, की वैधता पर सदैव सवाल खड़े किए जाते रहे हैं । जेल की सीमा के अंदर प्राप्त ‘स्वीकृति’ के आधार पर निर्गत किया था, जो उन अनगिनत मनमाने प्रकार से दी गयी सजाओं में से एक है, जो पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने समय-समय पर विविध लोगों को सुनाई हैं ।

अधिकारों का हनन

नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों के अंतर्राष्ट्रीयप्रतिज्ञापत्र का यह सर्वमान्य सिद्धांत है कि व्यक्ति को अपराधिक आरोपों के विरुद्ध अपनी प्रभावी सफाई और बचाव करने का अवसर प्रदान हो, उसे निष्पक्ष और ईमानदारीपूर्ण परीक्षण उपलब्ध हो जिसमें आरोपी की ओर से उसके द्वारा चयनित अधिवक्ता बहस कर सके । श्री जाधव को दूतावास से सम्पर्क स्थापित न करने देने के कारण पाकिस्तान ने वियना समझौते और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञा-पत्र दोनों का ही स्पष्ट उल्लंघन किया है । यदि नियत प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता और फिर श्री जाधव पर जासूसी करने के आरोप लगाए गए होते तो भारत केपास इस मामले को अंतर्राष्ट्रीय न्याय न्यायालय में प्रस्तुत करने की सम्भावना ही न बचती ।

स्पष्ट है कि ‘उचित और सचेतक’ प्रक्रिया कोताक में रखकर, पाकिस्तान ने विधिक नियमों की बुरी तरह अवहेलना तो की ही है उसने अपने देश को विश्व के अन्य राष्ट्रों की निगाहों में नीचे गिरा लिया है । इसके अतिरिक्त जाधव प्रकरण नेपाकिस्तान की बलूचिस्तान के निवासियों के आंतरिक असंतोष को दबाने के प्रयासों की भी धूल उड़ा दी है । भारत के खुफिया तंत्र की ऐसी मान्यता है कि वास्तव में श्री जाधव का अपहरण उन सशस्त्र समूहों में से एक ने किया था जो ईरान एवं बलूचिस्तान की सीमा पर कार्यरत हैं । पाकिस्तान छद्म-सुन्नी समूहों जैसे- अल-अदल का प्रयोग ईरान के विरुद्ध करता रहा है । ईरान के अधिकारियों ने अनेकों बार अपने भारतीय साथियों को बताया है कि किस प्रकार पाकिस्तान, ईरान-पाकिस्तान सीमा पर आतंकी गतिविधियों को उकसाता रहता है । इसका सबूत हाल ही में स्थापित एक समूह ‘जुनदुल्ला’ का उदय होना है, जो ‘विशेषत: प्रशिक्षित अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन है ।

भारत ने कुलभूषण जाधव को पाकिस्तानी जेल से छुड़ाने की इच्छा और लचीलापन दोनों दशार्यी हैं यद्यपि इस रास्ते पर अनेकों अड़चने आती रही हैं । राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (श्री अजीत डोबाल) एवं विदेश मंत्री (स्व. श्रीमती सुषमा स्वराज) के मिले जुले प्रयासों से भारत ने एक अपने देश के नागरिक के अपहरण के मामले को, जो वैध रूप से ईरान में अवकाश ग्रहण करने के उपरांत निवास कर रहा था, गम्भीरतापूर्वक लिया । यह मानते हुए कि वर्ष 2017 में, जब उन्हें पाकिस्तान का सैनिक न्यायालय मृत्युदंड की सजा सुना चुका था और भारत-पाकिस्तान के आपसी सम्बंध इतने नाजुक हो चुकेथे, कि किसी भी प्रकार की वार्ता सम्भव नहीं, यह उचित ही था कि भारत इस प्रकरण को ‘अंतर्राष्ट्रीय स्तर’ पर उठाए । इस दिशा में एक सुलझी हुई विधि वेत्ताओं की ‘टीम’ का चयन किया गया, जिसका नेतृत्व श्री हरीश साल्वे के हाथों में था । अत: मानवीय पक्ष पर जोर देते हुए, भारत ने पाकिस्तान को इस बात के लिए विवश कर दिया कि वह श्री जाधव को उनकी मां और पत्नी से मिलने दे । इस क्रम में भारत को पहली सफलता तब मिली जब मई 09, 2017 को अंतर्राष्ट्रीय न्याय न्यायालय नेपाकिस्तान के प्रधान मंत्री को एक आवश्यक सूचना भेजकर यह कहा कि वह श्री जाधव के मृत्युदंड को तब तक स्थगित रखे जब तक भारत का पक्ष पूरीतरह सुन न लिया जाए और यह न्यायालय अपना अंतिम निर्णय न सुना दे ।

ऐसी स्थिति में भारत की कोशिश होगी किपाकिस्तान उनकी मृत्युदंड की सजा के फैसले कोत्यागकर दूतावास के अधिकारियों को उनसे मिलने दे । ऐसे में यह आशा करना कि श्री जाधव शीघ्र ही मुक्त होकर भारत वापिस आ जायेंगे, दूर की कौड़ी होगी । फिर भी इन कठिन और लगभग असम्भवपरिस्थितियों में भारत को अपने प्रयास सतत रूप में जारी रखने होंगे ।

अग्रेतर संभव और वांछनीय कार्यवाही

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय के 6 सप्ताह उपरांत भारतीय दूतावास के अधिकारियों को श्री जाधव से मिलने की अनुमति दी गई । इस 2 घंटे की वार्ता के बाद विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि ”श्री जाधव बहुत दबाव में हैं और उन्होंने वही सब बोला जो पाकिस्तानी अधिकारियों ने उनसे बोलने के लिए कहा जिसमें यह भी सम्मिलित था कि वास्तव में उन्होंने जासूसी गतिविधि में भाग लिया है” । इसके उपरांत भारत ने पुन:-पुन: प्रयास किया कि दूतावास के अधिकारियों को दोबारा मिलने दिया जाए लेकिन पाकिस्तान ने इन निवेदनों को सिरे से ठुकरा दिया । अब यह वांछनीय होगा कि संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषदपाकिस्तान के इस व्यवहार को उचित रूप में लाने के लिए और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के आदेश का पालन करने के लिए उपयुक्त कदम उठाए । जैसा कि वर्षों पूर्व निकारागोआ में सैन्य और अर्धसैनिक कार्यवाहियों के विरूद्ध किया गया था । जिससे अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय का अनुपालन हो सके । इस क्रम में प्रसन्नता की बात यह है कि चीन के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में नियुक्त न्यायाधीश ने भी, जो कि उप-सभापति भी हैं, भारत के पक्ष में मत दिया था । इस प्रकार पाकिस्तान के लिए यह लगभग असंभव हो जाएगा कि वह जाधव के मामले में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसले के संदर्भ में सुरक्षा परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव का विरोध कर सके । अत: यह तत्काल आवश्यक है और समीचीन कि भारत इस दिशा में तेजी से कार्यवाही करे । हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ”कानून वह नहीं है जो पुस्तकों में लिखा है बल्कि कानून वह है जिसका अनुपालन होता है”। इस प्रकार की कार्यवाही से श्री जाधव का जीवन बचाया जा सकता है।

डॉ. अनुभा जोशी