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हौसले से जीती जाती है हर जंग स्क्वाड्रन लीडर एके सिंह

सफलता एक दिन में नहीं मिलती, अगर ठान लो तो एक दिन जरूर मिलती है। जी हाँ, इस असाधारण सोच से जीवन में कामयाबी की बुलन्दियों पर पहुंचने वाले डॉ. एमपीएस ग्रुप आॅफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरपर्सन स्क्वाड्रन लीडर एके सिंह आज किसी परिचय के मोहताज नहीं। भारतीय वायुसेना में स्क्वाड्रन लीडर के रूप में सेवाएं देने वाले एके सिंह ने जीवन के हर सफर में स्वयं को सफल व्यक्तित्व साबित किया है। शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा रोपा गया एक पौधा आज डॉ. एमपीएस ग्रुप आॅफ इंस्टीट्यूशंस के रूप में एक वटबृक्ष का रूप ले चुका है। स्क्वाड्रन लीडर एके सिंह का मानना है कि समाज कल्याण के लिए शिक्षा से बेहतर कोई और विकल्प नहीं हो सकता। भारत को यदि पुन: विश्व गुरु बनाना है तो देश के युवाओं का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करना होगा। स्क्वाड्रन लीडर एके सिंह से भारतीय वायुसेना और शिक्षा के क्षेत्र में उनके अनुभवों पर युवक पत्रिका के कॉन्सेप्ट एडिटर अजय शर्मा ने एक इंटरव्यू के दौरान खास बातचीत की इस दौरान उन्होंने अपने तमाम अनुभव बेबाकी के साथ कुछ इस तरह साझा किये…

जो युवा सैन्य सेवा में खासतौर से एयरफोर्स में जाना चाहते हैं उनको क्या संदेश देना चाहेंगे?

मैं कहना चाहूँगा कि भारतीय वायुसेना विश्व की पाँचवी सबसे सर्वश्रेष्ठ सेना है। वायुसेना में कार्य करना ना केवल आपको एक सम्मानजनक कॅरियर देता है बल्कि एक गर्व और रोमांच से भरी जीवनशैली भी प्रदान कराता है। जब आप वायुसेना के रोमांच से नीचे संसार को देखते हैं तो एक गर्व की अनुभूति होती है। जो युवा एयरफोर्स में जाना चाहते हैं उनको मैं यही कहूंगा कि अगर उनमें दृढ़ निश्चय एवं देश के लिए कुछ उत्कृष्ट करने की भावना है तो भारतीय वायुसेना आपके लिए अच्छा विकल्प है।

स्क्वाड्रन लीडर के रूप में वायुसेना में अपने कार्यकाल का कुछ खास अनुभव जो आप शेयर करना चाहें?

भारतीय वायुसेना जीवन का कार्यकाल बेहद रोमांचक और खतरों से भरा होता है। बहुत सारे अनुभव हैं, जिनको साझा करना संक्षिप्त में मुमकिन नहीं। हाँ, कुछ अनुभव जरूर साझा करना चाहूँगा। 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान कुछ समय के लिए लद्दाख और सियाचिन सेक्टर में युद्धभूमि पर जाने का अवसर प्राप्त हुआ। विशेष रूप से कहना चाहूँगा कि हमारे जवानों की मुस्तैदी, कठिन परिस्थितियों में लड़ने की क्षमता एवं हिम्मत विश्व में सर्वोच्च है। भारतीय वायुसेना इस प्रकार के आॅपरेशन में भारतीय थलसेना को एयर सर्पोट देकर युद्ध लड़ने में सहायता करती है। इस दौरान भारतीय थल सेना का जहाँ दुर्गम ऊँचाइयों पर जाना संभव नहीं था वहाँ हमने चेतक, चीता एवं एमआई-35 हैलीकॉप्टर के द्वारा बमबारी कर थलसेना के कार्य को सुगम किया। इसके अलावा जो भी संसाधन एवं सुविधाओं का आदान-प्रदान कराने की आवश्यकता पड़ी हमने किया। भारतीय वायुसेना ने रूसी निर्मित फाइटर सुखोई-30 वायुयान जब खरीदा तो मॉस्को में जाकर प्रिक्योरमेंट की प्रक्रिया को तय समय से कम वक्त में पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया एवं भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता को और शक्तिशाली बनाया।

स्क्वाड्रन लीडर के रूप में वायुसेना में अपने कार्यकाल का कुछ खास अनुभव जो आप शेयर करना चाहें?

भारतीय वायुसेना जीवन का कार्यकाल बेहद रोमांचक और खतरों से भरा होता है। बहुत सारे अनुभव हैं, जिनको साझा करना संक्षिप्त में मुमकिन नहीं। हाँ, कुछ अनुभव जरूर साझा करना चाहूँगा। 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान कुछ समय के लिए लद्दाख और सियाचिन सेक्टर में युद्धभूमि पर जाने का अवसर प्राप्त हुआ। विशेष रूप से कहना चाहूँगा कि हमारे जवानों की मुस्तैदी, कठिन परिस्थितियों में लड़ने की क्षमता एवं हिम्मत विश्व में सर्वोच्च है। भारतीय वायुसेना इस प्रकार के आॅपरेशन में भारतीय थलसेना को एयर सर्पोट देकर युद्ध लड़ने में सहायता करती है। इस दौरान भारतीय थल सेना का जहाँ दुर्गम ऊँचाइयों पर जाना संभव नहीं था वहाँ हमने चेतक, चीता एवं एमआई-35 हैलीकॉप्टर के द्वारा बमबारी कर थलसेना के कार्य को सुगम किया। इसके अलावा जो भी संसाधन एवं सुविधाओं का आदान-प्रदान कराने की आवश्यकता पड़ी हमने किया। भारतीय वायुसेना ने रूसी निर्मित फाइटर सुखोई-30 वायुयान जब खरीदा तो मॉस्को में जाकर प्रिक्योरमेंट की प्रक्रिया को तय समय से कम वक्त में पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया एवं भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता को और शक्तिशाली बनाया।

वायुसेना में सेवा के बाद आपने डॉ. एमपीएस एजुकेशन ग्रुप की शुरूआत की, शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?

वायुसेना में सेवाएँ देने के पश्चात मुझे लगा कि समाज कल्याण के लिए शिक्षा से बेहतर कोई और विकल्प नहीं हो सकता। मेरे प्रेरणाश्रोत महान शिक्षाविद् मेरे पिताजी स्व. डा. एमपी सिंह हैं जिनकी स्मृति में हमने डॉ. एमपीएस ग्रुप आॅफ इंस्टीट्यूशंस की शुरूआत की। उस समय शहर में व्यावसायिक शिक्षा का स्तर ज्यादा अच्छा नहीं था। हमने विभिन्न पाठ्यक्रमों के माध्यम से शहर के ऐसे युवा जो कि संसाधनों के अभाव में अच्छी शिक्षा से वंचित रह जाते थे या फिर बड़े शहरों में जाकर शिक्षा प्राप्त करने के लिए पर्याप्त धन नहीं होता था, ऐसे छात्रों को अपने ही शहर में उचित फीस में विश्वस्तरीय शिक्षा प्रदान करने का कार्य हमने किया।

शिक्षा के क्षेत्र में डॉ. एमपीएस ग्रुप आज एक जाना पहचाना नाम है इसकी सफलता का आधार क्या रहा?

शिक्षा के क्षेत्र में डॉ. एमपीएस ग्रुप आॅफ इंस्टीट्यूशंस ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। समूह के अंतर्गत डा. एमपीएस मैमोरियल कॉलेज आॅफ बिजनेस स्टडीज, डा. एमपीएस वर्ल्ड स्कूल, कॉलेज आॅफ बिजनेस स्टडीज एवं माता झंडेवालां एजुकेशन संस्थान आते हैं। लगभग 15 वर्ष पूर्व मात्र कुछ ही छात्रों से आरंभ हुआ ग्रुप आज उत्तर भारत के सर्वश्रेष्ठ समूहों में शुमार किया जाता है, इसकी सफलता का पूरा श्रेय मैं संस्थान के सभी उच्च पदाधिकारी, शिक्षकगण एवं संस्थान में कार्यरत हर एक पेशेवर को दूँगा। क्योंकि किसी भी संस्थान की सफलता अथवा विफलता में उसमें कार्यरत सदस्यों एवं नीतियों का बड़ा योगदान रहता है।

आज प्रतिस्पर्धा के दौर में शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतियों को किस प्रकार देखते हैं? प्रतिस्पर्धा अगर सकारात्मक दिशा में हो तो सदैव अच्छी होती है। शिक्षा के क्षेत्र में आज कई प्रकार की चुनौतियाँ हैं जिनको संक्षिप्त में बताना थोड़ा मुश्किल है। मैं सिर्फ इतना कहनाaz चाहूँगा कि कुछ लोगों ने शिक्षा का व्यवसायीकरण कर दिया है। उन्होंने शिक्षा के मंदिर को कारोबार बना दिया है। शिक्षा एवं शिक्षण संस्थानों का संचालन केवल शिक्षा में रुचि रखने वाले लोग ही करें तो समाज एवं देश के लिए बेहतर होगा। हमारा मूल उद्देश्य सिर्फ युवाओं को बेहतर शिक्षा और रोजगार के उत्तम अवसर प्रदान करते हुए एवं समाज को जिम्मेदार नागरिक प्रदान कराना है।

एजुकेशन के क्षेत्र में आपका क्या लक्ष्य है?

जैसा कि मैंने बताया कि हमारा लक्ष्य भारत की युवाशक्ति को सशक्त बनाना है, क्योंकि देश की सबसे अहम कड़ी इस देश का युवा है, अगर युवा भटका तो देश की बुनियाद कमजोरी हो जाएगी। हमारा यह कर्तव्य है कि बेहतर शिक्षा के जरिये देश के युवाओं को मजबूत करें ताकि भारत फिर से विश्व गुरु बने।

आपकी नजर में कॅरियर का सक्सेस मंत्रा क्या है?

मेरी नजर में पढ़ाई के साथ-साथ व्यक्तित्व एवं कौशल का विकास ही कॅरियर का सक्सेस मंत्रा है। ये वो मंत्रा है जो अगर आपने आत्मसात कर लिया तो आप जीवन के किसी भी पड़ाव पर मात नहीं खायेंगे।

महामारी के इस दौर में आॅनलाइन एजुकेशन का विकल्प उभर कर सामने आया है आप इसे आॅफलाइन की तुलना में किस प्रकार देखते हैं?

महामारी के इस दौर में आॅनलाइन एजुकेशन का विकल्प सामने आया है। जो कि एक बहुत ही सकारात्मक विकल्प है। आॅफलाइन शिक्षा से इसकी तुलना करना संभव नहीं है क्योंकि दोनों के अपने अलग पहलू हैं। एक तरफ जहाँ आॅनलाइन एजूकेशन उच्चतम तकनीक के सहारे छात्रों को अपने घर से ही पढ़ाई करने का अवसर प्रदान करती है वहीं आॅफलाइन शिक्षा कक्षा में आमने-सामने बैठकर शिक्षक को बेहतर रूप से अपनी बात समझाने का मौका देती है। दोनों के ही अपने अलग फायदे एवं नुकसान हैं।

एजुकेशन सेक्टर के अलावा अन्य कोई क्षेत्र जिसमें आप आगे विस्तार करना चाहें?

शिक्षा के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के साथ-साथ हमेशा से ही मेरा प्रयास रहा है कि मैं समाज के लिए जो भी संभव हो वो योगदान करता रहूँ। व्यावसायिक विस्तार की बात करूं तो एफएमसीजी के क्षेत्र में कुछ उद्योग शुरू करने की योजना है।

शिक्षा केवल कॅरियर का साधन है या संस्कारित भी करती है?

शिक्षा केवल कॅरियर मात्र का साधन नहीं है। शिक्षा से ही व्यक्ति में संस्कार ग्रहण करने की बौद्धिक क्षमता का विकास होता है। शिक्षा एवं संस्कार जब मिल जाते हैं तभी एक व्यक्ति का जीवन सफल होता है और कॅरियर की उच्चतम ऊँचाइयों को हासिल करता है।

युवाओं के समग्र विकास के लिए सबसे महत्वूपूर्ण पहलू क्या है?

मेरा मानना है सीखने का रास्ता हमेशा खुला रखें। हर एक व्यक्ति से एवं हर एक परिस्थिति से कुछ ना कुछ सीखें। शिक्षा, कौशल एवं व्यक्तित्व विकास का संतुलन बनाते हुए अगर आगे बढ़ेंगे तो समग्र विकास का मार्ग अवश्य प्रशस्त होगा।

बदलते दौर में युवाओं को आदर्श जीवन की क्या सीख देना चाहेंगे?

सादा जीवन-उच्च विचार के साथ-साथ अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए एवं अपने व्यावसायिक तथा पारिवारिक जीवन का संतुलन बनाते हुए अगर हम आगे बढ़ेगे तो किसी भी दौर में हमें कोई परेशानी नहीं होगी। दौर कितना भी बदले परंतु अगर आपके मूल सिद्धांत एवं कर्म अच्छे हैं तो आपका जीवन सफल है।

मनोरंजन के बदलते साधन और ओटीटी के प्रति युवाओं का रुझान और वर्तमान में परोसी जा रहा सामग्री पर क्या कहना चाहेंगे?

मनोरंजन के साधन पिछले एक दशक में बड़ी ही तेजी से बदले हैं। आज के दौर में बड़े पर्दे की फिल्मों एवं टी.वी. पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों की जगह विभिन्न ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर प्रसारित हो रहीं वेबसीरीज ने ले ली है। अब इनमें से हमें क्या देखना है क्या नहीं, वो हमें खुद ही तय करना है। जरुरत इस बात की है कि हमें इस बात का भी ध्यान रखना है कि घर में अगर छोटे बच्चे हैं तो किन चैनलों को सबस्क्राइब करना हैं और किनको नहीं।

सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव और युवाओं की भागीदारी पर क्या कहना चाहेंगे?

आज सोशल मीडिया एक बहुत ही प्रभावशाली विकल्प के रूप में सामने आया है। सोशल मीडिया का प्रयोग अगर सकारात्मक कार्यों के लिए किया जाये तो यह एक वरदान है। परंतु अगर युवा अपने मार्ग से भटक कर जरूरत से ज्यादा समय सोशल मीडिया पर व्यतीत करने लगें अथवा गलत तरीके से इसका प्रयोग करने लगें तो यह एक उदासीन विषय है।

आपदा के बीच भय और अस्थिरता के इस माहौल में निराश लोगों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

इस मुश्किल की घड़ी में मैं सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि लोग अपना संयम ना खोयें एवं अपने अंदर की मानवता को जगाए रखें। अगर सभी नागरिक एक-दूसरे की मदद के लिए सामने आयें, एक दूसरे का हौसला बढ़ायें एवं सकारात्मक ऊर्जा का संचालन करें तो हम इस मुश्किल वक्त से जल्द ही सफलतापूर्वक बाहर आ जायेंगे। लोगों से यही आग्रह करना चाहूँगा कि निराश न हों एवं जिस प्रकार हर रात के बाद सवेरा होता है, अंधेरे के बाद उजाला होता है उसी प्रकार ये वक्त भी गुजर जाएगा, सुनहरा कल फिर से आएगा, खुशियां देगी फिर से दस्तक ये देश और विश्व फिर से मुस्कुराएगा।